तेल अवीव । हमास सरगना इस्माइल हानिया की हत्या के लिए ईरान की राजधानी तेहरान का चयन एक फुलप्रूफ प्लानिंग का हिस्सा है। इजरायल ने इस घटना को काफी सोच-समझ कर अंजाम दिया है। इजरायल और ईरान की पुरानी दुश्मनी है। ईरान को हमास का कट्टर समर्थक माना जाता है। दूसरी ओर, ईरान की सैन्य ताकत उतनी ज्यादा नहीं है, जिससे इजरायल को अपने अस्तित्व पर खतरा महसूस हो। अप्रैल में ईरान के हमले ने उसकी सैन्य ताकत की पोल खोलकर रख दी थी, जिसमें से 99 फीसदी हथियार अपना लक्ष्य चूक गए। ऐसे में हमास सरगना को तेहरान में मारकर इजरायल ने एक साथ हमास और ईरान दोनों को कड़ा संदेश देने की कोशिश की है।
इजरायल के कतर में हमास सरगना की हत्या न करने के कई कारण थे। इनमें से पहला कारण कतर खाड़ी देश में अमेरिका का सहयोगी है। इतना ही नहीं, इजरायल कतर की ही मदद से हमास के साथ शांति वार्ता कर रहा था, जिसका उद्देश्य इजरायली बंधकों की सुरक्षित वापसी थी। अगर इजरायल कतर में हमास सरगना को निशाना बनाता तो इससे मध्य पूर्व के बाकी देश खुलकर इजरायल के विरोध में खड़े होते और सैन्य विकल्प भी तलाशते। इजरायल के इस फैसले का अमेरिका भी समर्थन नहीं करता और खुद को अलग कर लेता। ऐसे में इजरायल को भारी नुकसान उठाना पड़ता और अब्राहम संधि के कारण मित्र बने मध्य पूर्व के देशों से भी इजरायल को हाथ धोना पड़ता। इजरायल ने तुर्की में हमास चीफ को इसलिए नहीं मारा, क्योंकि यह देश नाटो सदस्य है। नाटो के किसी एक सदस्य पर हमला पूरे गठबंधन पर हमला माना जाता। वर्तमान में रूस से नजदीकी के कारण तुर्की पहले से ही अमेरिका की नजरों पर चढ़ा है। ऐसे में तुर्की में हमास चीफ की हत्या को राष्ट्रपति एर्दोगन युद्ध की चुनौती मानते और हो सकता था कि इस्लामी देशों का खलीफा बनने के चक्कर में छोटे पैमाने पर हमला भी कर देते। तुर्की सैन्य रूप से काफी शक्तिशाली है और उसके साथ युद्ध में इजरायल को नुकसान उठाना पड़ता। दूसरा, तुर्की के नाटो सदस्य होने के कारण अमेरिका खुलकर इजरायल की मदद नहीं कर पाता। पश्चिमी देश भी इजरायल से दूरी बना लेते। ऐसे में इजरायल ने तुर्की में हमास चीफ को निशाना न बनाना ही उचित समझा।