:: संस्था सेवा सुरभि द्वारा गांधी पुण्यतिथि की पूर्व बेला में गांधीवादी चिंतक एवं वरिष्ठ पत्रकार कुमार प्रशांत का व्याख्यान ::
इन्दौर । जहां कहीं हिंसा, अन्याय, अत्याचार एवं शोषण होता है, वहां लोग गांधी की तस्वीर लेकर विरोध करते हैं, क्योंकि गांधी ने हमेशा अन्याय और असमानता का अहिसंक तौर पर विरोध किया। उनके शरीर को छूटे 76 वर्ष हो गए। इसके बावजूद आज पूरी दुनिया उन्हें याद करती है, क्योंकि व्यक्ति मरता है, व्यक्तितत्व कभी नहीं मरता । गांधी ने प्रार्थना को मंदिर और पूजा घरों से बाहर निकाला और सभी धर्मों की प्रार्थना की। प्रार्थना में सबसे बड़ी शक्ति होती है। आज दुनिया में सारी समस्याओं का समाधान गांधी मार्ग पर चलकर ही संभव है। नए बच्चे गांधी के विचारों से प्रेरणा लेकर एक बेहतर समाज बना सकते हैं। सारी दुनिया गांधी को इसीलिए मानती है कि हिंसा के रास्ते से कोई भी समाधान संभव नहीं है।
गांधी पुण्यतिथि की पूर्व बेला में संस्था सेवा सुरभि द्वारा जाल सभागृह में आयोजित व्याख्यान में वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं प्रखर गांधीवादी चिंतक कुमार प्रशांत ने उक्त बातें कहीं। आज की कसौटी पर गांधी विषय पर अपने प्रेरक व्याख्यान में उन्होंने गांधी के व्यक्तित्व और उनकी विचारधारा को बहुत बेबाकी से व्यक्त किया, जिसे शहर के प्रबुद्धजनों और गांधीवादी कार्यकर्ताओं ने पूरे ध्यान से सुना।
प्रारंभ में सांसद शंकर लालवानी, पद्मश्री जनक पलटा एवं विष्णु बिंदल ने मुख्य वक्ता कुमार प्रशांत के साथ दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। अतिथि स्वागत गोविंद मंगल, डॉ. एस.एल. गर्ग, ऋषिका नातू, अनिल गोयल, अनिल मंगल, कमल कलवानी, एवं सेवा सुरभि के अन्य साथियों ने किया। गांधीवादी अनिल त्रिवेदी ने कुमार प्रशांत का परिचय दिया। कार्यक्रम में वरिष्ठ पत्रकार राजेश चेलावत, प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी, समाजसेवी गौतम कोठारी, स्नेहल मेहता, मुकुंद कारिया, राजेश कुंजीलाल गोयल, मुरलीधर धामानी, प्रो. राजीव झालानी, पर्यावरणविद डॉ. ओ.पी. जोशी, मोहन अग्रवाल, डॉ. दिलीप वाघेला, संदीप नारुलकर, आलोक खरे सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे। कुमार प्रशांत को संस्था द्वारा तैयार विचार पट्टिका पत्रकार राजेश चेलावत ने भेंट की। संचालन किया रंगकर्मी संजय पटेल ने। आभार माना कुमार सिद्धार्थ ने। व्याख्यान के पूर्व स्वर-स्मिता संगीत अकादमी के प्रशिक्षुओं ने ‘वैष्णवजन तो तेने कहिए’… ‘ये वक्त की आवाज है मिलकर चलो’… ‘तू ही राम है तू ही वाहेगुरू’…. और ‘दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल’…. जैसे गांधी के लोकप्रिय भजनों के भक्ति पद श्रीमती स्मिता मोकाशी के निर्देशन में प्रस्तुत किए।
कुमार प्रशांत ने कहा कि गांधी का सबसे से प्रिय भजन वैष्णवजन तो तेने कहिए इसलिए था कि संत नरसी मेहता का मानना था कि सच्चा मनुष्य वही है, जो दूसरों के दुख-दर्द को समझे और उसकी मदद के लिए आगे आए। गांधीजी ने जीवन पर्यंत यही किया। वे 80 वर्ष जिए, जिसमें से 60 वर्ष युद्ध में बिते, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध, हिरोशिमा एवं नागासाकी पर परमाणु बम का गिरना भी उसी कालखंड का हिस्सा रहा। गांधी ने कभी भी अन्याय और असमानता को मूकदर्शक बनकर नहीं देखा।
पश्चिम के दार्शनिक रोम्या राला ने गांधी के बारे में कहा है कि गांधीजी मुझे ईसा मसीह के समकक्ष नजर आते हैं। उन पर पांच बार हमले हुए और छठे हमले में वे मारे गए। आज की बात करें तो इस वर्ष सर्वाधिक नस्लवादी हत्याएं हुई, हमले हुए, जिनमें सबसे अधिक बच्चे मारे गए। गाजा, फिलिस्तीन, यूक्रेन, ईजराईल, अफगानिस्तान, लेबनान जैसे देशों पर बच्चे और महिलाओं पर सबसे ज्यादा अत्याचार हुए। यह सिलसिला आज भी चल रहा है। सारी दुनिया गांधी को इसलिए मानती है कि उन्होंने अहिंसा के रास्ते समाधान निकालने के सार्थक प्रयास किए। दुनिया हिंसा के रास्ते पर चलकर समाधान ढूंढना चाहती है। आज भी उनके संदेश इसीलिए प्रासंगिक हैं कि उन्होंने गांधीवादी रास्ते पर चलकर बिना हिंसा के बड़ी से बड़ी समस्याओं के समाधान ढूंढे हैं। आज के बच्चे भी उनसे प्रेरणा लेकर एक नए और शांतिप्रिय समाज का निर्माण कर सकते हैं। जहां भी हिंसा होती है, लोग आज भी गांधी की तस्वीर लेकर अपना विरोध प्रदर्शन करते हैं, क्योंकि उन्होंने हमेशा अन्याय और असमानता का विरोध किया। उन्होंने दुनिया को विरोध प्रदर्शन का एक नया और सर्वमान सिद्धांत दिया।