हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विवादों को शांतिपूर्ण ढंग से निपटाने में सहयोग करेगा भारत: राजनाथ सिंह

नई दिल्ली । हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इलाके में शांति और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए बनी हुई भारत की प्रतिबद्धता को दोहराया। उन्होंने कहा कि भारत का जोर क्षेत्र में विवादों के शांतिपूर्वक निपटारे के अलावा सदस्य देशों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने की ओर है। भारत यहां एक नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और यूएन के तहत बनाए गए वैश्विक नियम-कानूनों के सम्मान के अपने पुराने रुख पर कायम है। यह जानकारी राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को राजधानी दिल्ली में आयोजित किए गए इंडो-पैसिफिक रीजनल डायलॉग-2024 (आईपीआरडी) को संबोधित करते हुए दी। यह तीन दिवसीय सम्मेलन है जिसकी शुरुआत बीते तीन अक्टूबर को हो गई थी।
उन्होंने कहा कि क्षेत्र के लिए भारत का विजन सतत-आर्थिक विकास और आपसी सुरक्षा को लेकर भागीदारी बढ़ाने की ओर है। हमें क्षेत्र में एक भरोसेमंद, पसंदीदा सुरक्षा भागीदार और हिंद-प्रशांत में सबसे पहले प्रतिक्रिया करने वाले देश के रूप में देखा जा रहा है। हम आसियान की केंद्रीयता के साथ क्षेत्रीय संवाद, स्थायित्व और सामूहिक विकास के पक्षधर हैं। भारत महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय समुद्री मार्गों की सुरक्षा को बनाए रखने के लिए कटिबद्ध है। उसकी क्षेत्रीय भागीदार देशों के साथ तमाम गतिविधियां जारी हैं। इनमें द्विपक्षीय अभ्यास, सूचना साझा करने वाले कदम और सामूहिक समुद्री सुरक्षा तंत्र को मजबूती प्रदान करना शामिल है। इलाके में हिंद-प्रशांत के देशों के साथ सहयोग बढ़ाने में भारतीय नौसेना की काफी अहम भूमिका है। वह लगातार तमाम भागीदारों के साथ क्षमता विकास में लगी हुई है। भारत का हित विवाद में नहीं बल्कि समुद्री सहयोग को लगातार बढ़ावा देने की ओर है। किसी देश का हित अन्य किसी के साथ विवाद में आने का नहीं होना चाहिए। हम साथ मिलकर कार्य कर सकते हैं। रक्षा मंत्री ने कहा कि तेजी से बदलते अंतरराष्ट्रीय समुद्री परिदृश्य को शक्तियों के बदलते आयाम, संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा और उभरते सुरक्षा खतरे आकार दे रहे हैं। हिंद-प्रशांत का उभार वैश्विक शक्तियों के बीच संतुलन को प्रदर्शित करता है। यह दुनिया का सबसे जटिल भू राजनीतिक जोन है। जो आर्थिक और सामरिक हितों का केंद्र बिंदु है। यहां पूर्व में मौजूद कई अंतरराष्ट्रीय विवाद, प्रतिस्पर्धा और विवाद भी हैं। इनमें से कुछ स्थानीय प्रकृति के हैं जबकि कई के वैश्विक परिणाम, प्रभाव भी हैं। समुद्री संसाधनों के सम्मान के साथ हम देख रहे हैं कि भू राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में सराहनीय वृद्धि देखने को मिल रही है। जनसंख्या के निरंतर बढ़ने के साथ समुद्री संसाधनों की मांग भी बढ़ रही है।उधर, एसआईडीएम के 7 वें वार्षिक सत्र में रक्षा मंत्री ने कहा कि सरकार रक्षा उद्योग को निर्यातोन्मुखी बनाकर भारत को वैश्विक विनिर्माण केंद्र के रूप में उजागर करने के लिए प्रतिबद्ध है। केंद्र ने उद्योग को लक्ष्योन्मुखी दृष्टिकोण के साथ बढ़ते हुए निर्यात अनुपात आयात को कम करने के लिए प्रोत्साहित किया है। उन्होंने संगठन से बड़ी कंपनियों और विदेशी ओईएम को भारत में निवेश करने या कंपनी-2 आधार पर संयुक्त उद्यम खोलने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए रोडमैप तैयार करने का अनुरोध किया।