बाल विवाह, अपनी पंसद के जीनसाथी चुनने का विकल्प खत्म करता

सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताकर की टिप्पणी
नई दिल्ली । देश में हो रहे बाल विवाह को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जाहिर है। सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी कर कहा कि बाल विवाह निषेध अधिनियम को व्यक्तिगत कानूनों के जरिए बाधित नहीं कर सकते है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बच्चों से संबंधित विवाह और अपनी पसंद का जीवन साथी चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन है। बाल विवाह होने से जीनसाथी चुनने का विकल्प खत्म हो जाता है।
देश में बाल विवाह में वृद्धि का आरोप लगाने वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने बाल विवाह की रोकथाम पर कानून के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए दिशानिर्देश जारी किए। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़, जज जेबी पारदीवाला और जज मनोज मिश्रा की पीठ ने ये दिशानिर्देश जारी किए हैं।
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि बाल विवाह रोकथाम कानून को पर्सनल लॉ के द्वारा बाधित नहीं कर सकते है। कोर्ट के दिशानिर्देश में कहा गया कि इस तरह के विवाह नाबालिगों की जीवन चुनने की स्वतंत्र इच्छा का उल्लंघन हैं। प्राधिकारियों को बाल विवाह की रोकथाम और नाबालिगों की सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और अपराधियों को अंतिम उपाय के रूप में दंडित करना चाहिए।
इतना ही नहीं पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि बाल विवाह रोकथाम कानून में कुछ खामियां हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 बाल विवाह को रोकने और समाज से उनके उन्मूलन को सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया था। इस अधिनियम ने 1929 के बाल विवाह निरोधक अधिनियम का स्थान लिया।