कोहरा

देखकर मुझे राह में बटोही,

तू अपनी मंजिल न बदल।

मैं तेरा साथ निभाऊंगा, 

तू चल तो सही,

तुझे खुद में समाऊंगा।

राह न सूझे जब कभी, 

छोटे-छोटे पग बढ़ाते हुए,

तू चल तो सही 

मैं खुद को चिड़ता हुआ,

तुझको राह दिखाऊंगा।

साहस के साथ तू बढ़ा कदम 

धैर्य अपना दिखलाता जा,

तू चल तो सही, 

मैं वारि की मोती बनकर,

पग-पग ढलता जाऊंगा।

ज्यों-ज्यों तू आगे बढ़कर, 

मुझको चिढ़ता जाएगा,

तू चल तो सही 

आगे बढ़ते ही तेरे,

फिर पीछे छा जाऊंगा।

हूं छाया हुआ तेरी राह में 

फिर जब खत्म होगा अस्ति मेरा,

तू चल तो सही 

हर तरफ सुनहरा,

सूर्य का उजाला फैलाऊंगा।

हर सुबह, हर रात 

भीषण ठंड के साथ,

तू चल तो सही 

श्वेत कोहरा हूं मैं,

शीत ऋतु में आऊंगा।

              मंजु कुमारी मिश्रा

              होजाई, असम।