नई दिल्ली । आदिवासी मामलों के मंत्रालय ने 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को, जो वन अधिकार अधिनियम 2006 को लागू कर रहे हैं, जमीनी स्तर पर विस्तृत कार्यवाही शुरू करने को कहा है। वन अधिकार दावों के लंबित होने के कारण यह कवायद शुरू की गई है। मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, प्राप्त हुए दावों में से आधे से भी कम मामलों में ज़मीन के अधिकार या पट्टे दिए गए हैं। केंद्र सरकार आदिवासियों को जमीन का हक दिलाने के लिए एक बड़ा कदम उठा रही है। सरकार ने सभी राज्यों से कहा है कि वे दूर-दराज के इलाकों में रहने वाले आदिवासियों के लिए एक ट्राइबल एटलस तैयार करें। इस एटलस में जंगलों के अंदरूनी इलाकों तक सभी आदिवासी-बहुल गांवों का नक्शा होगा। यह एटलस प्रत्येक आदिवासी गांव का जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक प्रोफाइल बनाने में मदद करेगा। इससे सरकार यह पता लगा सकेगी कि किन आदिवासियों को अभी तक जमीन का हक नहीं मिला है।
एक फरवरी तक, 48.95 प्रतिशत दावेदारों को मीन के अधिकार दिए गए हैं, जबकि 36.43 प्रतिशत दावे खारिज कर दिए गए हैं। लगभग 14.62 प्रतिशत दावे अभी भी राज्यों के पास लंबित हैं। एक सीनियर मंत्रालय अधिकारी ने बताया, एक राज्य का आदिवासी एटलस राज्य सरकार और केंद्र को उन क्षेत्रों की स्पष्ट रूप से पहचान करने में मदद करेगा जहां भूमि अधिकार दावों को पूरा किया जा सकता है। जिला प्रशासन को ठीक-ठीक पता चल जाएगा कि किस गांव के किन आदिवासियों को अपनी मीन के पट्टे नहीं मिले हैं और उन्हें टारगेट करके काम पूरा किया जा सकता है।
अधिकारी ने बताया, ज्यादातर राज्यों ने राजस्व सीमाओं और वन क्षेत्रों की मैपिंग कर लिया है। अब वे इन नक्शों के जरिए आदिवासी आबादी, आदिवासी गांवों की संख्या, वे किस जंगल के पास रहते हैं और वे लघु वनोपज इकट्ठा करने या जमीन पर खेती करने के लिए कितनी दूर अंदर जाते हैं, इसके बारे में जनसांख्यिकीय विवरण प्राप्त करेंगे। इस तरह का पहला आदिवासी एटलस ओडिशा ने 2018 में तैयार किया था। यह एक ऐसा मॉडल है जिसे केंद्र अब सभी राज्यों में लागू करना चाहता है। राज्य इस काम के लिए जीआईएस (भौगोलिक सूचना प्रणाली) मैपिंग का इस्तेमाल करेंगे। एक बार ट्राइबल एटलस विकसित हो जाने के बाद, मंत्रालय राज्यों को उन गांवों को टारगेट करने में मदद करेगा जहां जमीन के अधिकार नहीं दिए गए हैं। जमीन के अधिकारों के दावों के निपटारे में सहायता के लिए लगभग 386 जिलों में दो सदस्यीय वन अधिकार प्रकोष्ठ स्थापित करने की पहचान की गई है। इन प्रकोष्ठों को स्थापित करने के लिए प्रत्येक ज़िले को लगभग 8.70 लाख रुपये मिलेंगे। अधिकारी ने कहा, यह एक्सपर्ट्स जनशक्ति ज़िला प्रशासन का मार्गदर्शन करेगी कि लंबित मामलों को कैसे निपटाया जाए। आंध्र प्रदेश, असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलंगाना, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर ट्राइबल एटलस विकसित करेंगे। अब तक, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश ने अपना ट्राइबल एटलस लॉन्च कर दिया है। यह कदम आदिवासियों के लिए एक बड़ी राहत की खबर है और उन्हें उनकी मीन का हक़ दिलाने में मददगार साबित होगा।