जाल सभागृह में समन्वय परिवार के तत्वावधान में ‘बदलते समय में परिवार की महत्ता’ विषय पर प्रेरक उद्बोधन ::

इन्दौर। अग्रवाल समाज पूरी दुनिया में भारत भूमि को सबसे पावन माना जाता है, क्योंकि हमारी पारिवारिक व्यवस्थाएं और मर्यादाएं इतनी श्रेष्ठ और व्यवस्थित हैं कि दुनिया के किसी अन्य देश में ऐसे परिवार देखने को नहीं मिलते। इनमें भी गृहस्थ आश्रम को सर्वश्रेष्ठ माना जाना चाहिए, क्योंकि अन्य सभी आश्रम भी गृहस्थ आश्रम से ही पलते और चलते हैं। यहां तक कि हम साधु-संन्यासी भी गृहस्थों पर ही निर्भर रहते हैं, हालांकि यह आधा सच है। पूरा सच यही है कि गृहस्थ आश्रम तभी श्रेष्ठ बनेगा, जब वहां पवित्रता और प्रसन्नता का पर्यावरण होगा। स्वच्छता और पवित्रता में अंतर को भी समझना होगा। एक फिल्म अभिनेत्री के कपड़े स्वच्छ हो सकते हैं, लेकिन मां का आंचल उससे कई गुना अधिक पवित्र होता है। परिवार में एक-दूसरे के प्रति समर्पण एवं सुख-दुख को आपस में बांटने का भाव होना चाहिए।
ये प्रेरक विचार हैं अयोध्या स्थित रामलला मंदिर न्यास के कोषाध्यक्ष स्वामी गोविंददेव गिरि महाराज के, जो उन्होंने मंगलवार रात को जाल सभागृह में भारत माता मंदिर हरिद्वार के संस्थापक स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि की प्रेरणा से गठित समन्वय परिवार इन्दौर द्वारा आयोजित कार्यक्रम में उपस्थित प्रबुद्धजनों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। प्रारंभ में समन्वय परिवार की ओर से उपाध्यक्ष रामअवतार जाजू ने स्वागत उदबोधन दिया। अध्यक्ष रणछोड़प्रसाद गनेरीवाल, आई.एस. श्रीवास्तव, कमलेश सोजतिया, महासचिव सी.ए. भरत सारड़ा, डॉ. आशुतोष सोनी, पुरुषोत्तम पसारी, मनोहर बाहेती, राजाराम बाल्दी, मोहन अग्रवाल, राकेश चौरड़िया एवं मनोहर चतुर्वेदी ने स्वामी गोविंददेव गिरि तथा स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि महाराज का स्वागत किया। इसके पूर्व संतद्वय ने ब्रह्मलीन स्वामी सत्यमित्रानंद गिरिजी के चित्र पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। अशोक पुंडलिक एवं गोविंद खंडेलवाल ने स्वामीजी की स्वरचित प्रार्थना का सामूहिक पाठ करवाया। संचालन उपाध्यक्ष अनिल भंडारी ने किया और अंत में आभार माना सी.ए. भरत सारडा ने।
अपने प्रभावी एवं सारगर्भित उदबोधन में राष्ट्रसंत स्वामी गोविंददेव गिरि ने ‘बदलते समय में परिवार की महत्ता’ विषय पर बोलते हुए कहा कि हम वसुधेव कुटुम्बकम की भावना में सम्पूर्ण विश्व को एक परिवार के रूप में मानने वाले लोग हैं, लेकिन विश्व के पहले परिवार को भी जानना जरूरी है। परिवार तभी सुखी रह सकता है, जब हम ‘मैं’ की जगह ‘हम’ की भावना आगे रखेंगे। यह ‘हम’ का भाव ही परिवार की पहचान होता है। परिवार में परस्पर स्नेह और सदभाव के वातावरण से ही हम सुख और शांतिपूर्ण जीवन यापन कर सकते हैं। आज के युग में परिजनों में जो मतभेद और मनभेद दिखाई देते हैं, उनके पीछे मनुष्य के अपेक्षा एवं उपेक्षा के भाव ही मुख्य होते हैं। रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों में परिवारों की श्रेष्ठ व्याख्या की गई है। भारत भूमि को आर्यावृत भी कहा गया है, इसीलिए इसे पूरे विश्व में पावन भूमि का मान और सम्मान मिला हुआ है। गृहस्थ आश्रम सबसे श्रेष्ठ आश्रम माना जाना चाहिए, क्योंकि बाकी सभी आश्रम गृहस्थ आश्रम से ही पलते और चलते हैं। यहां तक कि हम साधु-संन्यासी भी गृहस्थों पर ही निर्भर हैं। यह आपका बड़प्पन है कि आप हमें इतना मान-सम्मान देते हैं। परिवार तभी संतुष्ट और परिपूर्ण कहलाएंगे, जब हम पवित्रता और प्रसन्नता का महत्व भी समझेंगे। कार्यक्रम में स्वामी अखिलेश्वरानंद गिरि ने भी संबोधित किया और कहा कि ग्लोबलाइजेशन और सेटेलाइट के इस युग में हमें अपनी पारिवारिक सभ्यता और संस्कृति को भी बचाना आवश्यक है।