जिस व्यक्ती के अंदर निर्णय लैने की क्षमता का अभाव होता है वह व्यक्ति छोटी छोटी बातों से तमतमा उठता है – मुनि श्री प्रमाणसागर महाराज

-दूसरे के कार्यों और बचनों को अपने मानडंडों से नापने की कोशिश मत करो
-अपने अंदर सहजता और मन को शांत और वाणी से मौन धारण कर लोगे तो आपके अंदर का सारा आक्रोश और क्रोध थोड़ी देर में समाप्त हो जाऐगा

भोपाल । जब कभी हम किसी से कोई अपेक्षा रखते हे,और वह हमारी अपेक्षा में खरा नहीं उतरता,तो हम उसके प्रति क्रोधित एवं असहजत हो जाते है और हमारे अंदर आक्रोश प्रकट हो, मुख पर कठोरता बाणी में तीक्ष्णता आ जाती है, जो हमारी बुद्धि और विवेक को लील कर विदग्ध कर देती है। कठोर कर्कश बाणी और चहरा तमतमाया दिखता है उपरोक्त उदगार मुनि श्री प्रमाणसागर महाराज ने अवधपुरी में रविवारीय प्रवचन सभा को सम्वोधित करते हुये व्यक्त किये। प्रवक्ता अविनाश जैन विद्यावाणी ने बताया मुनि श्री के प्रवचन पारस एवं जिनवाणी चैनल तथा प्रमाणिक एप के माध्यम से भी सुनकर लाभ उठा सकते है। मुनि श्री ने आक्रोश के लक्षणो की चर्चा करते हुये कहा जिस व्यक्ती के अंदर निर्णय लैने की क्षमता का अभाव होता है वह व्यक्ति छोटी छोटी बातों से तमतमा उठता है, तथा क्रोध आक्रोश, आवेश में आत्म नियंत्रण से बाहर होकर सामने बाले की इंसल्ट करता है। स्वयं आग बबूला होकर उसका चेहरा क्रोध से तमतमा उठता है ऐसे आपे से बाहर व्यक्ती को आप लोग पागल कहते हो। मुनि श्री ने कहा कि क्रोध और आक्रोश तात्कालिक भी हो सकता है तथा किसी समय का संचित द्वैष का परिणाम भी हो सकता है। जैसे आपने किसी से कोई काम का कहा और वह उसे पूर्ण न कर पाये तो आपका मन उसके प्रति खींज उठता है। अथबा किसी से कोई अतिरिक्त अपेक्षा पाल लैना और उसकी पूर्ति न होंने पर क्षोभ उत्पन्न होता है। तो ऐसी स्थिति में थोड़ा रूकिये उसके पूर्वा पर विचार करें उतावली न करें। यदि किसी के प्रति अहंकार और अधिकार की भावना होती है,तो उसकी पूर्ति न होंने पर बहूत छोटी छोटी बातों से मन का आक्रोश फूट पड़ता है। मुनि श्री ने कहा कि दूसरे के कार्यों और बचनों को अपने मानडंडों से नापने की कोशिश मत करो एक क्षण का आक्रोश जिंदगी भर के सम्वंधों को तोड़ देता है। उन्होंने क्रोध और आक्रोश के निवारण का उपाय बताते हुये कहा अपने अंदर सहजता और मन को शांत और वाणी से मौन धारण कर लोगे तो आपके अंदर का सारा आक्रोश और क्रोध थोड़ी देर में समाप्त हो जाऐगा। सामने वाला यदि क्रोध कर रहा है तथा आक्रोश में है तो उसके दृष्टिकोण को समझिये तथा
त्वरित प्रतिक्रिया देंने से बचें एवं अपनी सोच को सकारात्मक दिशा प्रदान करेंगे तो आपका क्रोध समाप्त हो जाऐगा। मान लीजिये कोई व्यक्ति आपका धन नहीं दे रहा है। तो आप उससे ठंडे मन से जितना प्रयास करेंगे उतना अच्छा रहेगा। घर में आपकी पत्नी ने यदि किसी दिन अच्छा भोजन नहीं बनाया तो आप भड़खें नहीं वल्कि सकारात्मकता से महोल को अच्छा बनायेंगे तो समस्त नकारात्मकता समाप्त हो जाऐगी।