चिनाब रेल ब्रिज : जम्मू-कश्मीर की घाटी को पहली बार ट्रेन से देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने वाली यह अभिनव कीर्ति

अद्भुत इंजीनियरिंग और दूरदर्शी नेतृत्व का परिणाम है, राष्ट्र की संकल्प गाथा का अनमोल अध्याय
अहमदाबाद | आजादी के समय भारत के अधिकांश क्षेत्र रेल नेटवर्क से जुड़े हुए तो थे, लेकिन महत्त्व का जो क्षेत्र अलग-थलग था, वह था जम्मू-कश्मीर। यह क्षेत्र भौगोलिक रूप से पहुँच से दूर था, लेकिन रणनीतिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण था। फिर भी हिमालय की गोद में बसा यह रियासती प्रदेश दशकों तक भारतीय रेल नेटवर्क से कटा रहा। इस क्षेत्र को एक मजबूत रेल नेटवर्क से जोड़ना न केवल एक तकनीकी और भौगोलिक चुनौती थी, बल्कि एक भावनात्मक दूरी भी इसे राष्ट्र की मुख्यधारा से अलग करती रही। आज इस दूरी को एक महान राष्ट्रीय संकल्प, अद्भुत इंजीनियरिंग और दूरदर्शी नेतृत्व के द्वारा समाप्त किया जा रहा है और वह साधन है चिनाब रेल ब्रिज। भारतीय रेल द्वारा बनाया गया चिनाब ब्रिज, दुनिया का सबसे ऊँचा सिंगल- आर्च रेलवे ब्रिज है। यह जल्द ही जम्मू-कश्मीर की घाटी को पहली बार ट्रेन से देश के बाकी हिस्सों से जोड़ने जा रहा है।
दुनिया का सबसे ऊँचा ब्रिज
जम्मू-कश्मीर के रियासी जिले में स्थित चिनाब नदी पर बना प्रतिष्ठित चिनाब रेल पुल न केवल एक अभूतपूर्व इंजीनियरिंग उपलब्धि है, बल्कि यह भारत के संकल्प, सामर्थ्य और रणनीतिक सोच का प्रतीक भी है। इस अद्वितीय परियोजना को पूरा होने में 20 वर्ष से अधिक का समय लगा और आज यह विश्व का सबसे ऊँचा रेलवे पुल बन चुका है। दुनिया के इतिहास में यह पुल भारत का गौरव बढ़ाएगा। एफिल टावर से 35 मीटर ऊँचा यह स्टील आर्च पुल 359 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है और इसे बक्कल और कौंड़ी को जोड़ने के लिए बनाया गया है। यह पुल न केवल इन दो किनारों को जोड़ता है, बल्कि कश्मीर घाटी को भारत के रेल नेटवर्क से सीधे जोड़ने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम भी है।
पर्यटन को मिलेगा बढ़ावा
यह पुल 272 कि.मी. लंबे ऑल-वेदर रेल मार्ग का हिस्सा है, जो जम्मू से शुरू होकर कश्मीर घाटी तक जाएगा। इस मार्ग में कुल 38 सुरंगें और 927 पुल शामिल हैं- जो इस पूरे प्रोजेक्ट की तकनीकी जटिलता और महत्त्व को दर्शाते हैं। हालांकि इस रूट की पूरी तरह से शुरुआत के लिए कोई निश्चित समय-सीमा अभी तय नहीं की गई है, लेकिन यह मार्ग भविष्य में क्षेत्रीय परिवहन, व्यापार और पर्यटन को नया जीवन देगा। अब तक कश्मीर में रेल सेवा केवल संगलदान से बारामूला तक ही सीमित थी। यह ब्रिज न केवल भौगोलिक दूरी को पाटता है, बल्कि यह भारत के सामरिक उद्देश्यों, क्षेत्रीय समावेश और आर्थिक विकास की दिशा में भी एक मील का पत्थर सिद्ध हो रहा है।
राष्ट्रीय एकीकरण का प्रतीक
कश्मीर घाटी का सड़क संपर्क हर सर्दी में भारी बर्फबारी के कारण बाधित हो जाता है, जिससे क्षेत्र का देश के बाकी हिस्सों से संपर्क टूट जाता है। इस नई रेलवे लाइन से भारत को न केवल एक स्थायी और भरोसेमंद कनेक्टिविटी मिलेगी, बल्कि यह उसे संवेदनशील सीमावर्ती क्षेत्रें में रणनीतिक बढ़त भी देगी। यह रेल लिंक भारत को ‘पश्चिमी और उत्तरी सीमाओं पर पाकिस्तान और चीन द्वारा किसी भी दुस्साहसिक प्रयास का प्रबंधन करने की क्षमता’ प्रदान करेगा। यह पुल साल भर सैन्य उपकरणों और कर्मियों को सीमाओं तक पहुँचाने में सहायक होगा।
राजनीतिक और सामाजिक संदर्भ
वर्ष 2019 में भारत सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने और इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किए जाने के बाद से, इस क्षेत्र में कई बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं पर काम शुरू हुआ है। रेलवे लिंक सहित 50 से अधिक सड़क, रेलवे और बिजली परियोजनाएँ इस कार्यक्रम का हिस्सा हैं। परियोजनाओं का उद्देश्य क्षेत्र के विकास और एकीकरण को गति देना है, लेकिन रोजगार, व्यापार और बेहतर कनेक्टिविटी के नए अवसर भी लाएगी।
चिनाब रेल पुल जैसे मेगा प्रोजेक्ट न केवल इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण का है, बल्कि क्षेत्रीय रोजगार का बड़ा स्रोत भी साबित होगा। पुल निर्माण के दौरान हजारों मजदूरों, इंजीनियरों और तकनीशियनों को सीधे व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिला। इसके अतिरिक्त, ट्रांसपोर्ट, होटलिंग, कंस्ट्रक्शन सप्लाई जैसी सहायक गतिविधियाँ भी सक्रिय हुईं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को गति मिली।
व्यापार : यह पुल कश्मीर घाटी को देश के प्रमुख व्यापारिक केंद्रों जैसे दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत से सीधे जोड़ने में मदद करेगा। फल, सब्जी, हस्तशिल्प और अन्य स्थानीय उत्पाद अब अधिक समय और लागत की बचत के साथ नए बाजारों तक पहुँच सकेंगे। इससे कश्मीरी किसानों और व्यापारियों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि की संभावना है।
कनेक्टिविटी : रेल कनेक्टिविटी एक समावेशी विकास की नींव होती है। चिनाब पुल के माध्यम से जम्मू और कश्मीर के बीच अब वर्ष भर निर्बाध संपर्क संभव हो पाएगा, जो सर्दियों में सड़क अवरोध के कारण अब तक संभव नहीं था। साथ ही, यह पुल देश की सीमाओं पर तैनात सुरक्षा बलों को तेज आवाजाही की सुविधा भी देगा, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा तंत्र को मजबूती मिलेगी।
निर्माण की चुनौतियाँ
चिनाब पुल को वर्ष 2003 में मंजूरी मिली थी, लेकिन इसकी निर्माण प्रक्रिया कठिनाईयों से भरी रही। हिमालय की दुर्गम भौगोलिक स्थितियाँ, संवेदनशील भूकंपीय क्षेत्र, संकरी सड़कें और सीमित पहुँच, सभी ने इसे इंजीनियरिंग की दृष्टि से अत्यंत चुनौतीपूर्ण बना दिया। शुरुआती चरणों में इंजीनियरों को निर्माण स्थल तक पैदल या खच्चरों के सहारे पहुँचना पड़ता था। ब्रिज को 266 कि.मी./घंटा तक की आंधियों और संभावित विस्फोटों को सहन करने योग्य बनाया गया है। इसमें प्रयुक्त संरचना विस्फोट-रोधी है और यह 40 किलो टीएनटी तक के विस्फोट को सहन कर सकती है।
आर्थिक संभावनाएँ
इस रेलवे परियोजना के पूरा होने से कश्मीर घाटी की अर्थव्यवस्था को नई दिशा मिल सकती है। कश्मीर के 70% से अधिक लोग कृषि और विशेष रूप से नष्ट हो सकने वाले फलों की खेती पर निर्भर हैं। सर्दियों में खराब सड़क संपर्क के कारण फल और अन्य उत्पाद समय पर देश के बाजारों तक नहीं पहुँच पाते, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है।
रेलवे संपर्क से किसानों की आमदनी में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है। दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले से हरियाणा, पंजाब और दिल्ली जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में भेजे जाते हैं। लेकिन इस तरह की व्यापार शृंखला बढ़ाने से वहाँ आर्थिकि संभावनाओं के द्वार खुलेंगे। चिनाब ब्रिज के माध्यम से रेलवे से दक्षिण भारत के बाजारों तक सीधी पहुँच भी संभव हो सकेगी। हालाँकि, लास्ट-माइल कनेक्टिविटी एक बड़ी चुनौती है। लेकिन इस ब्रिज से इस दिशा में भी नई राह खुलेगी।
हालांकि पुलवामा के किसानों का यह कहना है कि सबसे नजदीकी स्टेशन 50 कि.मी. दूर है और इतनी दूरी तक माल को पहुँचाना, फिर ट्रेन में लोड करना, नष्ट हो सकने वाले उत्पादों के लिए व्यवहारिक नहीं है। जब तक स्थानीय सड़क और लॉजिस्टिक नेटवर्क को बेहतर नहीं किया जाता, तब तक रेलवे से पूरी तरह लाभ मिलना संभव नहीं होगा। भारतीय रेल लॉजिस्टिक नेटवर्क को भी मजबूत बना रहा है।
पर्यटन में संभावनाएँ
रेलवे संपर्क से कश्मीर में पर्यटन को भी नया जीवन मिल सकता है। पिछले कुछ वर्षों में, कश्मीर के प्राकृतिक सौंदर्य ने देश और विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित किया है। जम्मू और श्रीनगर के बीच सीधी और सस्ती रेल सेवा यात्र के समय को आधा कर देगी, जिससे पर्यटकों की संख्या और बढ़ सकती है। बेहतर परिवहन सुविधा से नए पर्यटन केंद्र विकसित किए जा सकते हैं, जिससे स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा और क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियाँ तेज होंगी। रियासी जिला, जहाँ त्रिकुटा पहाड़ियों पर स्थित माता वैष्णो देवी का प्रसिद्ध मंदिर है, जम्मू और कश्मीर में पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है। हर साल यहाँ लगभग एक करोड़ तक पर्यटक पहुँच जाते हैं। उन्होंने जिले की ऐतिहासिक और प्राकृतिक स्थलों, जैसे शिव खोड़ी, सलाल डैम और भीमगढ़ किले को और अधिक पर्यटकों के लिए आकर्षक बनाने की संभावनाएँ बढ़ जाएंगी। इस कनेक्टिविटी से रियासी जिले को एक समृद्ध पर्यटन केंद्र में बदला जा सके।