:: ईंटों सहित निर्माण सामग्री के दामों में हुई वद्धि ::
इन्दौर । पिछले माह हुई बेमौसम बारिश एवं ओलावृष्टि के कारण ठप पड़े ईंट भट्टों पर अब तक नई ईंटों का निर्माण कार्य शुरू नहीं हो पाने से शहर में चल रहे करीब ढाई हजार छोटे-बड़े निर्माण कार्यों की रफ्तार या तो थम गई है या कम पड़ गई है। दूसरी ओर मांग के मुकाबले उत्पादन नगणन्य होने से ईंटो के भावों में भी अप्रत्याशित तेजी आ गई है। निर्माण कार्यों में लगने वाली अन्य सामग्री जैसे रेती, चूरी, गिट्टी एवं अन्य सामग्रियों के दाम भी बढ़ गए हैं।
म.प्र. ब्रिक्स मेन्यू. एसो. के अध्यक्ष रमेश प्रजापति, संरक्षक मांगीलाल रेडवाल एवं रमेश चंद्र कश्यप ने बताया कि पिछले माह 4 से 6 मई और उसके बाद हुई बेमौसम बाऱिश के कारण शहर के 600 से अधिक ईंट भट्टों पर रखी गई लाखों ईंटे मलबे के ढेर में तब्दील हो गई, जिन्हें पकाने के लिए रखा गया था। अचानक हुई ओलावृष्टि और वर्षा के कारण ये सभी ईंटें नष्ट हो चुकी हैं। इसके कारण ईंट भट्टों पर फैला हुआ मलबा भी बमुश्किल हटाया जा रहा है, लेकिन इस स्थिति में नई ईंटों का निर्माण कार्य पिछले एक माह से लगभग ठप हो चुका है।
शहर में करीब ढाई हजार स्थानों पर विभिन्न निर्माण कार्य चल रहे हैं, किन्तु मांग के मुकाबले में ईंटों का उत्पादन नगण्य होने से सभी निर्माण कार्यों की गति धीमी पड़ गई है, बल्कि कई निर्माण कार्य तो बंद ही हो गए हैं। प्राकृतिक आपदा के पूर्व ईंटों के भाव आठ से साढ़े आठ हजार रुपए प्रति हजार चल रहे थे, लेकिन अब मांग बढ़ने से इंटों के भाव नौ हजार रुपए से भी ऊपर तक पहुंच गए हैं। यही नहीं कई भवन निर्माता और अन्य निर्माण कार्यों से जुड़े लोग आसपास के जिलों से ईंटे लाकर अपना काम महंगे दामों पर चलाने पर मजबूर हो रहे हैं। ठेकों पर काम करने वाले लोग घटिया मटेरियल का उपयोग भी करने पर बाध्य हैं,क्योंकि उन्हें समय पर अपना काम पूरा करने का अनुबंध निभाना है। ईंटों के साथ-साथ रेती, गिट्टी और चूरी के दामों में भी बढोत्तरी हो जाने से निर्माण कार्यों की लागत 25 से 40 प्रतिशत तक बढ़ गई है। इसका असर उन छोटे भूखंड और भवन मालिकों पर अधिक हो रहा है, जो बजट से बाहर हो जाने के कारण अपने निर्माण कार्य को न तो समय पर पूरा कर पा रहे हैं और न ही निर्माण कार्य आगे बढ़ाने की स्थिति में हैं। शहर में ऐसे अनेक निर्माण कार्य आधे-अधूरे पड़े हैं और वहां लगे मजदूर भी बेरोजगार होकर पलायन कर रहे हैं।
इस संबंध में एसो. के पदाधिकारियों ने पिछले दिनों राज्य के नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय से भी मिलकर उन्हें इस स्थिति से अवगत कराते हुए जिला प्रशासन के नाम ज्ञापन सौंपा था। वर्ष 2006 में जिला प्रशासन ने भट्टा संचालकों को मौसम से हुई तबाही का आर्थिक मुआवजा दिया था, जबकि इस बार तो जबर्दस्त तबाही हुई है, इसलिए विजयवर्गीय से मांग की गई है कि वे शासन एवं प्रशासन से उचित मुआवजा दिलाएं।