इंदौर । राजस्थान के झालावाड़ में एक सरकारी स्कूल भवन ढहने की दर्दनाक घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया, लेकिन लगता है इंदौर नगर निगम के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। शहर में ऐसे कई सरकारी स्कूल मौत के मुहाने पर खड़े हैं, जो हज़ारों मासूम छात्रों की जान के लिए कभी भी काल बन सकते हैं। क्या प्रशासन किसी और त्रासदी का इंतज़ार कर रहा है?
:: खजराना का स्कूल : शिक्षा का मंदिर या मौत का जाल?
इसका सबसे खौफनाक उदाहरण है शासकीय हायर सेकेंडरी स्कूल, खजराना। इस स्कूल की इमारत इतनी खस्ताहाल है कि देखकर रूह काँप जाए, फिर भी इसी में छात्रों को पढ़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। 25 जुलाई, 2025 को स्कूल के प्रिंसिपल ने सहायक आयुक्त, इंदौर नगर निगम को एक और दिल दहला देने वाला पत्र लिखा है। यह पत्र सिर्फ एक कागज़ का टुकड़ा नहीं, बल्कि उन पहले के कई पत्रों (11 दिसंबर, 2024, 9 अप्रैल, 2024 और 25 जून, 2025) का दर्दनाक सिलसिला है, जिनमें स्कूल की जर्जर हालत के बारे में बार-बार चेतावनी दी गई थी।
:: नींव में ही थी बर्बादी की इबारत!
प्रिंसिपल के पत्र के अनुसार, इस स्कूल भवन का निर्माण इंदौर नगर निगम ने ही करवाया था, लेकिन मानो इसे बनाने वालों ने छात्रों की जान से खिलवाड़ करने की ठान ली थी। भवन में न तो कोई मज़बूत नींव डाली गई, न ही दीवारों पर ठीक से प्लास्टर किया गया. आज हालत यह है कि दीवारों में बड़ी-बड़ी दरारें पड़ गई हैं और वे कभी भी भरभरा कर गिर सकती हैं। कुछ हिस्से तो पहले ही टूट चुके हैं। सोचिए, निर्माण के दौरान भी दो-तीन बार छोटी-मोटी दुर्घटनाएं हुईं थीं, और एक बार तो दीवार के मलबे में एक कोबरा सांप और उसके बच्चे तक मिले थे! क्या यही है हमारे बच्चों के लिए सुरक्षित भविष्य?
:: सरकारी लापरवाही का नग्न प्रदर्शन ::
सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि इन जानलेवा कमरों में न सिर्फ स्कूल की कक्षाएं चल रही हैं, बल्कि स्टाफ रूम और ऑफिस भी यहीं से संचालित हो रहे हैं। हद तो तब हो गई जब इसी सत्र से व्यावसायिक शिक्षा योजना के तहत IT और परिधान की कक्षाएं भी शुरू कर दी गईं, जिनके लिए अतिरिक्त कमरों की ज़रूरत है। प्रशासन को न तो बच्चों की सुरक्षा की परवाह है, न ही उनके भविष्य की।
:: कब जागेगा सोता हुआ प्रशासन?
प्रिंसिपल ने अपने पत्र में सहायक आयुक्त से बच्चों के भविष्य के लिए इस जर्जर भवन का तत्काल पुनर्निर्माण कराने की गुहार लगाई है। उन्होंने साफ चेतावनी दी है कि इन खस्ताहाल कमरों में पढ़ाई जारी रखना किसी बड़ी दुर्घटना को दावत देने जैसा है। इस अहम पत्र की प्रतियां इंदौर ज़िले के कलेक्टर, इंदौर जनपद पंचायत के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और ज़िला शिक्षा अधिकारी को भी भेजी गई हैं।
सवाल ये नहीं कि अधिकारी कब कार्रवाई करेंगे, सवाल ये है कि उन्हें और कितने मासूमों की बलि चाहिए, ताकि वे अपनी गहरी नींद से जाग सकें? क्या इंदौर भी झालावाड़ जैसी त्रासदी का गवाह बनेगा, या फिर इस बार समय रहते कोई कदम उठाया जाएगा? समय निकलता जा रहा है और खतरा लगातार बढ़ रहा है!