जनसुनवाई निकली दिखावा – सरपंच, सचिव और अफसरों पर कार्रवाई से कलेक्टर ने फेर ली नज़र
सिंगरौली। ग्राम पंचायत भंवरखोह के हटका गाँव की बसोर बस्ती के आदिवासी आज सवाल पूछ रहे हैं – आखिर उनकी गाढ़ी कमाई का हकदार कौन है? विधायक निधि से करोड़ों रुपये खर्च कर जिस पुलिया का निर्माण कराया गया, वह न तो जरूरत की जगह पर बना, न ही मानक के हिसाब से। यह पूरा काम भ्रष्टाचार और बेईमानी की मिसाल बनकर खड़ा है।
सरपंच पति की मनमानी का आलम यह है कि रात के अंधेरे में जेसीबी मशीन लगाकर बुनियाद खोदी गई और घटिया माल डालकर पुलिया खड़ा कर दिया गया। न बोर्ड लगाया गया, न लागत का हिसाब, न पारदर्शिता। जहाँ पुलिया की असली जरूरत थी, वहाँ निर्माण ही नहीं हुआ। इसके बजाय बसोर समाज के लोगों को सड़क का लालच देकर उनकी पट्टे की ज़मीन पर पुलिया ठोक दिया गया।
लोगों का आरोप है कि सीमेंट कम, भस्सी और 14-15 गाड़ी बोल्डर डालकर पुलिया तैयार कर दिया गया। और जब ग्रामीणों ने सड़क की मांग की तो सरपंच पति का जवाब था – “हमारा काम हो गया, अब पंचायत के पास तुम्हारे लिए पैसा नहीं।”
सबसे बड़ा सवाल प्रशासन पर खड़ा होता है। आदिवासी समाज ने इस पूरे घोटाले की शिकायत कलेक्टर की जनसुनवाई में की, लेकिन न जांच हुई, न कार्रवाई। अधिकारी और जनप्रतिनिधि सब एक-दूसरे को बचाने में लगे हैं। करोड़ों की विधायक निधि का बंदरबाँट हो गया और आदिवासी अब भी मेन रोड तक पहुँचने के लिए दर-दर भटक रहे हैं।
यह खुला भ्रष्टाचार है, यह लोकतंत्र के साथ धोखा है। जब आदिवासियों की आवाज़ कलेक्टर के दरबार में भी दबा दी जाती है तो यह तय है कि जनसुनवाई सिर्फ दिखावा बनकर रह गई है
अब सवाल यह है – क्या सरकार और प्रशासन में इतनी हिम्मत है कि सरपंच-सचिव और जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई कर सके? या फिर यह पैसा भी सियासी संरक्षण में लूट की परंपरा का हिस्सा बनकर रह जाएगा?