नई दिल्ली । बीते कुछ सालों में वह राजनीतिक मांगों को लेकर भी सक्रिय रहे सोनम वांगचुक के अनशन के दौरान ऐसी हिंसा भड़की की 4 लोगों की मौत हो गई और 70 घायल हो गए। हिंसा की यह आग इतनी तेजी से फैली की भाजपा के दफ्तर में तोड़फोड़ हुई और कई जगहों पर आगजनी की गई। इसके बाद केंद्र सरकार ने स्पष्ट कहा है कि सोनम वांगचुक की ओर से लद्दाख के युवाओं को उकसाने वाले बयान दिए गए हैं। यह भी हिंसा का एक कारण रहा है। इसके अलावा उनकी इसी साल 6 फरवरी को हुई पाकिस्तान की यात्रा पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं।
इसके बाद सोनम वांगचुक ने अपना अनशन खत्म कर दिया है और कहा कि हिंसा के चलते उनके आंदोलन का उद्देश्य कमजोर हुआ है। लेकिन सवाल यहीं खत्म नहीं हुए हैं। सोनम वांगचुक को लेकर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। इस बारे में जब सोनम वांगचुक से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि लद्दाख में चल रहा यह आंदोलन पूरी तरह से ऑर्गेनिक और स्थानीय था। उन्होंने कहा कि भाजपा की ओर से कई वादे लद्दाख को लेकर किए गए थे, जो पूरे नहीं हुए। उन्होंने कहा कि स्थानीय युवाओं में बेरोजगारी है। कई सालों से लोग परेशान हैं। उन्हें लगता है कि शासन तो अब भी बाहर से ही चल रहा है। ऐसे तमाम कारणों की वजह से स्थानीय लोगों में रोष है। उन्होंने यह भी कहा कि हम शांतिपूर्ण विरोध के साथ हैं। ऐसी हिंसा होना मेरे जीवन का सबसे दुखद अवसर रहा है। भले ही सोनम वांगचुक सफाई दे रहे हैं, लेकिन यह सच है कि उनकी छवि पर सीधा असर पड़ा है। कभी सामाजिक कार्यकर्ता की पहचान रखने वाले सोनम वांगचुक अब राजनीतिक विवाद का हिस्सा बन गए हैं। उन्होंने कहा कि बीते 5 सालों से हम शांति से अपना विरोध दर्ज कराते रहे हैं। महात्मा गांधी के रास्ते पर चलकर अपनी बात रखी है।
कांग्रेस की हैसियत नहीं कि हिंसा करे
भाजपा सांसद संबित पात्रा ने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्षद स्टानजिन त्सेपांग ने इस हिंसा को भड़काया। इस पर पर्यावरण कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने भाजपा के आरोपों को नकारते हुए कहा कि कांग्रेस की इतनी पकड़ लद्दाख में नहीं है कि वह 5,000 युवाओं को सड़क पर उतार सके। उन्होंने कहा, कांग्रेस के एक पार्षद ने गुस्से में अस्पताल का दौरा किया क्योंकि उनके गांव के दो लोग घायल थे, लेकिन इससे यह कहना कि कांग्रेस ने हिंसा कराई, सही नहीं है।