भोपाल, 17 नवंबर (वार्ता) संतान सुख से अधिक शायद कोई खुशी नहीं है, लेकिन कोई भी व्यक्ति अपनी संतान को सेना की वर्दी में पहली बार देखने पर जो गौरव महसूस करता है, वह निश्चित ही अतुल्य होता है।
मध्यप्रदेश विधानसभा के अधिकारी बीपी शर्मा के पुत्र कप्तान इशांक शर्मा बचपन से ही देश सेवा की मानसिकता के थे। उनके लिए साल 1999 निर्णयक साबित हुआ क्योंकि ऑपरेशन विजय के दौरान भारतीय थल सेना के अधिकारियों और जवानों की अदम्य साहस, कर्तव्य निष्ठा अौर बलिदान की भावना ने एक छोटे से बालक को सैन्य जीवन की तरफ मोड़ दिया। इशांक अपने माता पिता की इकलौती संतान हैं। शर्मा परिवार का कोई अन्य सदस्य सशस्त्र सेनाओं में कार्यरत भी नहीं है।
नेशनल डिफेन्स अकादमी में प्रशिक्षण के पश्चात 11 दिसंबर 2015 को इशांक सेना के कमीशंड अधिकारी बने और वर्तमान में असम में पदस्थ हैं। हाल ही में उन्होंने कर्नाटक के बेलगाव में कमांडो प्रशिक्षण प्राप्त किया। यह प्रशिक्षण इस साल छह अक्टूबर को शुरु होकर दस नवंबर को समाप्त हुआ। इस प्रशिक्षण में सौ से ज्यादा अधिकारियों ने शिरकत की।
कप्तान शर्मा के पिता श्री शर्मा ने यूनीवार्ता से कहा कि बचपन में भी उनके पुत्र ने जरूरतमंदों की मदद की। ऐसे कुछ मौके आये, जब इशांक ने पिता से आग्रह किया कि वे कुछ निर्धन बच्चों के स्कूल की फीस भर दें। सतना में जन्मे उनके पुत्र की स्कूली शिक्षा भोपाल में हुई। इशांक राष्ट्रीय स्तर के बैंडमिंटन खिलाडी है और हॉकी, फुटबाल, बास्केटबाल एवं मुक्केबाजी में भी अव्वल हैं।
यह भी एक दिलचस्प तथ्य है कि भारत की पहली महिला कमांडो प्रशिक्षक एवं सातवीं डिग्री ब्लैक बेल्ट प्राप्त डॉ सीमा राव और उनके पति मेजर दीपक राव ने दो दशकों में 15 हजार कमांडो को तैयार किया। मेजर राव दुश्मन से बहुत ही नजदीकी लडाई में विशेषज्ञ हैं और उन्होंने इस युद्धकला के अाधुनिकीकरण में महती भूमिका निभाई है। इस दंपति ने भारतीय सैन्यकर्मियों के लिए एक किताब भी लिखी है जो आतंकवादियों के विरूद्ध लोहा लेते समय छुपाये हुए विस्फोटक को आसानी से चिह्नित करने में मददगार साबित होती है।
सं गरिमा
वार्ता