:: छत्रीबाग रामद्वारा पर भक्ति सत्संग में उमड़ रहा भक्तों का सैलाब ::
इन्दौर (ईएमएस)। कलयुग में आग लगाने के लिए माचिस की जरूरत नहीं होती, यहां तो आदमी ही आदमी को देख कर जलने लगता है। आतंकवाद एक वैश्विक समस्या बन गई है। जबतक देश के सभी राजनैतिक दल इस मुद्दे पर एकजुट नहीं हो जाते, भारत आतंकवाद मुक्त देश नहीं बन सकता। बाहर से ज्यादा खतरनाक भीतर के आतंकवादी है। इनके नाश के लिए रामनाम की भक्ति ही एक मात्र हथियार है। यह भी देखना पड़ेंगा कि आतंकवाद का सृष्टा कोन हैं और आस्तीन के सांपों को किसने पाला है। आतंकवाद से ज्यादा शक्ति हमारी भक्ति में होना चाहिए, तभी एक स्वस्थ, समृद्ध और सक्षम समाज एवं राष्ट्र का निर्माण हो पाएगा।
ये प्रेरक एवं ओजस्वी विचार हैं अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के आचार्य जगदगुरू स्वामी रामदयाल महाराज के, जो उन्होने आज छत्रीबाग रामद्वारा पर चल रहे भक्ति सत्संग की महती धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। संप्रदाय के मूलाचार्य स्वामी रामचरण महाराज के त्रिशताब्दी जन्म महोत्सव के उपलक्ष्य में चल रहे इस सत्संग में प्र्रतिदिन भक्तों का सैलाब उमड़ रहा है। सत्संग का शुभारंभ ट्रस्ट के देवेंद्र मुछाल, रामसहाय विजयवर्गीय, गिरधर गोपाल नीमा, रामनिवास मोढ़, लक्ष्मीकुमार मुछाल, सुरेश काकाणी आदि द्वारा आचार्यश्री के स्वागत से हुआ। प्रारंभ में संत रामस्वरूप रामस्नेही बेगूवाले ने वाणीजी का पाठ किया। सत्संग में देश के विभिन्न रामद्वारों से आए संत भी उपस्थित थे। ट्रस्ट के रामसहाय विजयवर्गीय ने बताया कि रामद्वारा पर 9 दिसंबर तक प्रतिदिन प्रातः 7.30 बजे से वाणीजी का पाठ, 8.30 से 9.45 तक आचार्यश्री एवं अन्य संतों के प्रवचन तथा प्रतिदिन सूर्यास्त के समय संध्या आरती का क्रम चलेगा।
आचार्यश्री ने कहा कि बाहर के आतंकवादी तो दिखाई देते हैं लेकिन अंदर के आतंकवादी कब, कहां किस पर हमला कर दें, नहीं दिखाई देता। मानसिक विकारों वाले इन आतंकवादियों से जूझने के लिए रामनाम की भक्ति का ही हथियार काम आएगा। शबरी के जूठे बैर में भी इतनी ताकत थी कि प्रभु राम को वहां स्वयं आना पड़ा । भक्ति की शक्ति मंे ही यह क्षमता हो सकती है कि भगवान को भी दौड़ कर अपने भक्त की रक्षा के लिए आना पड़ता है। भारत भूमि भक्ति की ही भूमि है। यहां सैकड़ों भक्त हुए हैं, जिनकी रक्षा के लिए भगवान हर रूप और वेश में अवतरित हुए हैं। दुनिया का कोई बंधन नहीं, जो भगवान को बांध सके लेकिन भक्ति की डोर ही इतनी मजबूत होती है कि भगवान स्वयं उसमें बंधने के लिए चले आते हैं।
उमेश/पीएम/07 दिसम्बर 2018