रावण नहीं मरेगा

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रामलीला मैदान में

रावण ,कुँभकरण, मेघनाद के

पुतले तैयार खड़े थे,

रावण के पुतले को देख !

जैसे वो भीड़ का उपहास कर रहा था

क्योंकि वे पाशविकता से

मुस्कुरा ही नहीं रही थीं

ऐसा लग रहा था जैसे

बड़ी बेशर्मी से भीड़ को घूर रही हों।

अचानक मुझे लगा

कि रावण का पुतले से निकल

एक साया मेरे पास आया

और मुझसे पूछ बैठा

क्या सोच रहे हैं भाया?

मैं हडबड़ाया

पसीने पसीने हो गया।

साया कुटिल मुस्कान से मुस्कराई

अपना सवाल फिर से दोहराई

मैंने गमछे से जल्दी जल्दी

अपना पसीना पोंछ हिम्मत जुटाई।

हे रावण! तुम राम के हाथों

कुँभकरण मेघनाद संग

जलकर मरने वाले हो

फिर भी हँस रहे हो, तनकर खड़े हो।

क्या तुम्हें डर नहीं लगता?

हर साल मरने के बाद भी

बेशर्मी का तनिक भी अहसास नहीं होता?

इतना सुन रावण जैसे द्रवित हो गया

मेरे कँधे पर अपना हाथ रख दिया

फिर उसने जो कहा

उससे मेरे मन में रावण के लिए

सम्मान का भाव उत्पन्न हो गया।

रावण ने मुझसे इतना कहा

कि तुम सबसे बड़े बेशर्म हो

रावण से भी बड़े रावण हो

हमें, हमारे भाइयों को

हर साल जलाते हो,

फिर भी नहीं शर्माते हो।

अपने मन के रावण को

पहले क्यों नहीं जलाते हो?

एक रावण के पीछे

इतने रावण मिलकर

पौरुष क्यों दिखाते हो?

मैं अकेला रावण था

जिसे राम ने मारा था।

पर  मैं मरा कहाँ था

मैं तो अमर हो गया,

राम के हाथों मरकर

वंश, कुल, कुटुंब सहित तर गया।

तुम सबको लगता है

मैंनें सीता का हरण किया था,

पर ऐसा नहीं था

सीता के रुप में अपने

और अपने वंश, कुल, कुटुंब का

मोक्षद्वार लाकर लंका में

खड़ा किया था,

राम के हाथों मरने के लिए

बस छोटा सा नाटक रचा था,

राम को लंका तक लाने के लिए

सफल षड्यंत्र रचा था।

मैं तो अपने उद्देश्य में देखो

सफल भी हो गया,

राम की लीला ही है जो

राम के नाम के सहारे ही सही

रावण वंश, कुल सहित

देख लो अमर  हो गया।

मैं विषमय से रावण को देख रहा था

उसके एक एक शब्द का

वजन तौल रहा था,

रावण की आँखों में खुशी के साथ

मोक्ष की खुशी देख रहा था।

मैंनें  संयत भाव से

रावण को देखा, फिर शीश झुकाया

उसने बड़े प्यार से मुझे उठाया

गले लगाया, मेरी पीठ थपथपाया

ढाँढस बंधाया फिर समझाया

वत्स! मुझे जलाकर कुछ नहीं होगा

जलाना ही है तो

अपने अंदर के रावण को जलाओ

रावण बन रावण को भला

कैसे मार पाओगे,

बनना ही है तो राम बनो

राम न सही कम से कम इंसान तो बनो।

मैं हर साल भाइयों संग जलता हूँ

कम से कम कुछ तो सीखो,

मरकर बार बार जलने से अच्छा है

राम का आदर्श अपनाओ,

मोक्ष पाने का उपाय अपनाओ

राम तो बन नहीं सकते कम से कम

राम की शरण में ही जाओ

सच मानों तुम सबका

भाग्योदय हो जायेगा,

मोक्ष का द्वार चलकर

तुम्हारे पास आयेगा,

रावण का पुतला जले न जले

रावण की फौज का

विस्तार रुक जायेगा,

धरती पर राम ही राम नजर आयेगा।

तभी रावण का पुतला

धू धूकर जल उठा

लोगों का शोर गूंज उठा

जय श्री राम,जय श्री राम,

ऐसा लगा कि जलकर भी रावण

बड़ा संदेश ही नहीं

जीवन मंत्र दे गया,

सचमुच रावण कुटुंब सहित तर गया

खुद को राममय कर गया

रामनाम के साथ अमर हो गया।

✍ सुधीर श्रीवास्तव

       गोण्डा, उ.प्र.