अपना बनाता है

कभी तो  रूठता  कोई  कभी  अपना  बनाता है,

हँसाता है कभी मुझको कभी मुझको रुलाता है।

बहुत हैं ज़िंदगी में ग़म,बता  ए  दिल  कहांँ  जाएं,

न  कोई  साथ  है अपने, ज़माना  भी  सताता  है।

कभी जो खा़स थे  मेरे,न  जाने  आज  क्यों  रूठे,

उन्हीं की याद है दिल में। समय  वो ही लुभाता है।

तुम्हारी  भी  यही  मरजी ,समझ  के  मैं  परेशां हूंँ,

बनाता  है  प्रभो  हमको, कभी  तू  ही  मिटाता है।

समझ ले है  बडा ये ।खे़ल। जग में रोज जो होता,

कभी खुशियाँ दिलाता तो, कभी ये ग़म दिलाता है।

इरादा है  यही  अपना  किसी के  काम  आ  जाएँ,

हमारा  काम   ये ‘वीनू’  जमाने   को  न  भाता  है।

वीन शर्मा,वरिष्ठ कवयित्री 

जयपुर-राजस्थान