मेरी दास्तान

कभी रो देती हूँ

कभी मैं हंसती हूं

कभी खुशी पा लेती हूं

गमगीन कभी हो जाती हूं

बस खुद में ही

खोई रहती हूं।

अपनी मजबूरी को

ताकत अपनी बनाती हूं

तोहमत किसी पर यूँ

ही नहीं लगाती हूं

बस खुद में ही

खोई रहती हूं।

भरोसा सब पे 

नहीं करती हूं

कसौटी पे अपनी

 ही तौलती हूं

बस खुद में ही

खोई रहती हूं।

जो मिल गया

उसे मुक्कदर समझती हूं

जो न मिल पाया

उसे भुला ही देती हूं

बस खुद में 

खोई रहती हूं।

मुकेश बिस्सा

जैसलमेर