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तेरी यादों का समुंदर
दिल में समा रखा है हमने
उठे अरमानों के तूफ़ाँ लाख
झील-सा शान्त मन
स्वागत में सजाएं बैठी हूँ ।
ग़र हो कद्र मेरे जज़्बातों की
मोड़रूख हवाओं का
आ मिल जा मुझसे तू
सुनहरा-सा एक ख़्वाब
संजो रखा है मैंने।
साथ छोड़ ना देना
बीच मझधार में माहियाँ मेरे
जोड़ रखा है हर ख़्वाब तुमसे
गुलशन में बहार आएगी
एक दिन सोच रखा है मैंने।
तेरी हर बेफ़िक्री का
दिल पे असर यूँ होता है
ज़ख्म कितने ही मिलें मुझे
टूटे दिल मरहम लगाये बैठी हूँ ।
छोटी-छोटी यादों के
मासूम से अहसासों को
रिश्ते में सजाये बैठी हूँ
‘मैं’ और ‘तुम’ को बाबस्ता
‘हम’ बनाने को बेकरार हूँ मैं।
● रीना अग्रवाल , सोहेला (उड़ीसा)