दोहे

घोषित कर खुद को यहां,संत महात्मा सिद्ध।

नज़र गड़ाए मांस पर,बैठे हैं सब गिद्ध।

मानवता से प्रेम का,यहां भूल कर मर्म।

हथियारों से लैस है,नए दौर का धर्म।।

जिनकी होनी थी यहां,सिर्फ़ क़फ़स में ठौर।

वे उल्लू ही बाग के,बने हुए सिरमौर।

जिनकी कहीं न पूछ थी,वे मनुष्य ही चंद।

आज किए हैं गांव का, हुक्का पानी बन्द।।

घर आंगन में हो गया,जब से वह तक़सीम।

लगता पेड़ बबूल का,तब से बूढ़ा नीम।।

पहले लिया यक़ीन में,मिला चोंच से चोंच।

फिर चिड़िया के बाज़ ने,पंख लिए सब नोंच।।

सत्यवान सत्य

गांव-मुबारिकपुर

ज़िला-झज्जर

हरियाणा–124109

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