ख्वाहिशों का निमंत्रण

ख्वाहिशों ने रंगीन सपना दिखाया बहुत है।

मुझे इसने बहलाकर आजमाया बहुत है।।

फँस ना जाऊँ मै मृगमरीचिका के जाल में।

ओंस से अपनी प्यास को बुझाया बहुत है।।

रूठने,मनाने और मिन्नतों का क्रम चलता ।

इसके इन नाज नखरों ने रूलाया बहुत है।।

इसके फरेबों को समझ दूर होना चाहती ।

इसने कशिशभरे आमंत्रण से बुलाया बहुत है।।

रूग्ण सी दिखती अल्पायु में दम तोङती ।

कंधो पर इनका जनाजा उठाया बहुत है।।

अपनापन देकर बेकरार कर करार लुटती।

चाह में “सीमा” ने हँसकर लुटाया बहुत है।।

सीमा लोहिया 

झुंझुनू (राजस्थान)