रेखा अभी-अभी ब्यूटी पार्लर से मेंहदी लगवा कर आई है ।आज उसे कुछ काम नहीं करना है। खाने की सब तैयारी मेड कर रही है आज बस उसे पिया के लिए सजना और संँवरना हांँ वह नई ड्रेस जो शैलेश कल परसों दिलवा कर लाए थे वही तो पहननी है। आज शैलेश की मम्मी जी भी आने वाली है ओह! सुगना जल्दी-जल्दी काम करो देखो सब खाना बनाकर तैयार कर दो। घर को भी थोड़ा ठीक करो। रेखा ने सोफे पर बैठते हुए कहा। सुगना भाग -भाग के काम कर रही थी। पतली -दुबली साँवली बड़ी सी लाल बिंदी माथे पर आंखों में काजल लाल हरी साड़ी पहने हुए आज उसने भी हाथ भर के चूड़ियां पहनी थी और उसके हाथ की मेंहदी से सजे थे। रेखा का तभी सुगना पर ध्यान गया। “अरे !सुगना क्या तुम्हारा भी व्रत है? “हांँ मेम साहब आज मेरा भी व्रत है आप बोले तो मैं आज थोड़ा जल्दी चली जाऊं?
“हांँ -हांँ सब काम करके तुम जल्दी चली जाना पर तुमने व्रत क्यों रखा? तुम्हारा आदमी तो तुम्हें रोज दारू पीकर मारता है।” रेखा ने बड़ी उलझन से पूछा। “वो मेम साहब कोई बात नहीं मारता है तो मेरा ही आदमी तो मारता है उसके रहते बस्ती में कोई मुझे आंँख उठाकर नहीं देख सकता” उसने बड़े गर्व से कहा
जल्दी जाने की इजाजत पाकर रसोई में आकर उसके हाथ जल्दी-जल्दी चलने लगे ।चूड़ियों की खनखनाहट रेखा के कानों में पड़ रही थी वह सोचने लगी पति की मार में भी प्यार देखने वाली नारी तुम धन्य हो तुम्हारी गंभीरता ,तुम्हारी सहन शक्ति वंदनीय है कुछ देर बाद सुगना ने पास आकर कहा “सब काम हो गया मेम साहब मैं जाऊं’ “हांँ हांँ जाओ “अरे सुनो ये रुपये रख लो अपने लिए कुछ खरीदते हुए ले जाना” रेखा ने कहा “भगवान आपको सदा सुखी रखें मैम साहब ” कहते हुए सुगना तेज तेज कदमों से अपनी बस्ती की तरफ चल दी चांँद देखने की तैयारी उसे भी तो करनी है।
वीनू शर्मा
जयपुर राजस्थान