चौथ आ गया

प्रतीक अनुराग का चौथ सुहाना आ गया,

चौथ के चांद को भी इठलाना आ गया,

मेंहदी रचा सोलह श्रृंगार नवेली दुल्हन सा कर,

पिया संग प्रेम जताने का फिर बहाना आ गया।

सात फेरों की रीति को निभाना आ गया,

चलनी में चांद सा चेहरा देख मुस्कुराना आ गया,

निर्जला उपवास जो नहीं इतना आसान,

प्रीतम के लिये अब दिल से मनाना आ गया।

चांद संग साजन को छुपाना आ गया,

चमकते चांद को देख थोड़ा शर्माना आ गया, 

कथा वाचन, मां गौरी शिव की आराधना कर,

उपवास को हर्षोल्लास उत्सव बनाना आ गया।

चांद को ख़्वाहिशों पर सजाना आ गया,

अखंड सौभाग्य का वर पाना आ गया,

मीठा मीठा सा इंतजार कर साजन का,

पुरानी संस्कृति को वापिस संजोना आ गया।

अंशिता त्रिपाठी

लंदन