दिवाली का है त्यौहार आया
संग अपने खुशियों की बहार है लाया
पर उन नम आंखों वाले बच्चे का क्या
जिन्होंने इस दिवाली मिठाई, पटाखे कुछ नहीं पाया!!
खड़ा हुआ मासूम पटाखे की चाह में
ना कुछ बोला ना कहा अकेला उस राह में
मेरे पूछने पर सिर हिलाया नहीं चाहिए कुछ भी
सिर्फ खड़ा निहारता रहा उस पटाखे की चाह में!!
फटे पुराने कपड़ों में उसको देखा
और भूख से बेतहा तड़पते देखा
उम्र में काफी है वह छोटा लेकिन
सच हृदय में उसके स्वाभिमान को पलते देखा!!
दीपक को की सजी है पूरी कतार
जगमगा रहा हर तरफ पूरी संसार
उनका क्या जिनका घर है अभी तक अंधकार
कैसे मनाए वो यह दिवाली का त्यौहार!!
तेरी रहमत से बरसती है,लोगों की पुताई मे
तूने गरीब क्यों बनाया, रह गया बेचारा मुरझाई में
सोचकर तेल लाऊं या दिवाली का दीपक जलाऊं
या इस घर की चूल्हा जलाऊं इस महंगाई में!!
चलो इस दिवाली को खुशहाल बनाते हैं
कुछ माटी के दीए उनके घर भी जला आते हैं
जो टकटकी निगाहों से कर रहे पापा का इंतजार
कुछ मिठाई, तोहफ़े और प्यार भरी मुस्कान उन बच्चों को भी दे आते हैं!!
राज कुमारी
गोड्डा, झारखण्ड