और मुझे तड़पाओगे
लंबी-लंबी, ऊंची-ऊंची
दीवारें तुम चिनवाओगे
बरसात बनकर आऊंगा मैं
तब तुम रास्ता छोड़ जाओगे…
रोक कर करोगे क्या?
तुम मुझे जलाओगे
मेरे तन की तपन से
ठंडक तुम खुब पाओगे
पर,अतृप्त प्यास में तुम फंसके
मौज नहीं ले पाओगे।
रोक-टोक का खेल
कब तक खेलते जाओगे
हवा को रोको,रोशनी को रोको
आखिर खुद रूक जाओगे
रोको अपने मन को
नहीं तो बहुत पछताओगे।
जुवां नहीं मुझमें
मुझको नहीं सुन पाओगे
जख्म तन का और
तुम कुरेदते जाओगे
जख्में हीं जख्में जब होगी
तो तुम कैसे जी पाओगे?
राजीव
( कविता का संदर्भ बहता नदी से है।ऐसे इसके संदर्भ और भी हैं।संदर्भ पाठकों पर भी निर्भर करता है।