चादर अंधकार की हो फैली, चहुंओर यदि,
रोशन कर ही देगी उसे, दिवाली रिश्तो की,
कितनी भी हो रात काली, पर उजाले से है डरती,
प्रेम दीप जलाकर, दहलीज रोशन होती रिश्तो की,
अपने हैं साथ तो अंधेरों में भी रास्ता निकल आता,
जीवन के हर मोड़ पर ज़रूरत होती हमें अपनों की,
सुख में निभाते हैं साथ, दुख में समझते हैं जज़्बात,
अपनों के साथ धूप भी ठंडी छांव लगती, सफ़र की,
हर रिश्ता जो हमारे साथ है, अपने आप में खास है,
बस रिश्तो को समेटने में जरूरत, थोड़ी मिठास की,
हर मुश्किल घड़ी में एक दीवार की तरह होते रिश्ते,
जिससे टकराकर चूर हो जाती,परेशानियां जीवन की,
रंग-बिरंगे इन रिश्ता से ही तो रोशन है ये जहां हमारा,
कोई रूठा अगर, तो कोशिश न छोड़ो उसे मनाने की,
रिश्ता बनाना आसान है, पर इसे निभाना है मुश्किल,
नोक झोंक, थोड़ी तकरार यही खासियत है रिश्तो की,
अपनों का विश्वास और साथ ही, हिम्मत है हौसला है,
अपने उजाला बनके साथ हैं,तो क्या मजाल अंधेरों की,
छोटी-छोटी बातें दिल से न लगाना,रिश्तो को सहेजना,
क्योंकि अपनों का साथ ही तो है, मंजिल खुशियों की।
मिली साहा……
कोलकाता…..