दीपावली

कुसुम से रमा-गणपति जी की, करे पूॅंजन भवन में, 

उसके पश्चात होगा प्रवेश, मंगला का सहन में |

कुमकुम का चिंह लगा भाल पे, कर पे बाॅंधी ताॅंती, 

चिराग हुए दीप निवास के, चमकने लगी बॉंती |

धूल गए मिट्टी के ये कण, गगन हुए उजियारे,

चमकने लगी थालियां सभी, दीप बन गए तारें |

चौदह सन के अंत रामजी, विजयी हो रावण से, 

संग सीता और लक्ष्मण के, वापस आए वन से |

अजिरा में शोर पटाखों का, रॉकेट छुए अंबर, 

फूलझड़ियों से निकली दीप्ति, चमक उठा समस्त घर |

दिवा गुनगुने, यामा शीतल, संध्या हुई गुलाबी, 

दिवाकर घुल गया उषा में, ऋतु हुई खराबी |

गयें दिन बारिश के खुला नभ, महके समस्त उपवन, 

नगर-नगर में खुशियाँ बिखरी, प्रफुल्लित हुए चितवन |

अरूण हो गया अदृश्य नभ में, आहिस्ता से निशि आई, 

निलय-निलय में दीया उजले, तो सॉंझ जगमगाई |

अमल धवल अस्त-व्यस्त प्रवात, व्योम विकसित कौमुदी, 

कुसुम खिले सुगंधि हुई धरा, पादप सौरभ सौन्धी |

कमला कलित अखिल पुष्प पुंज, बड़ी विभा कलिका की, 

चारों और पसरी विफलता, मंजुल चन्द्रिका की |

                                     -निहाल सिंह

                                 झुंझुनू ,राजस्थान