धरती की पुकार

     धरती  कहे  पुकार  के,

    अब  सुन  लो  मेरे  लाल।

हर सुख-सुविधा तुम यहाँ से पाते,

फिर,क्यों  नहीं  करते  मेरा श्रृंगार।

       धरती कहे………………

नदियाँ-झड़ने सब सूख रहे हैं,

देखो,जलस्तर पहुँचा पताल।

यह  सोच  मैं तड़प  रही  हूँ,

कहीं प्यासा रह न जाए मेरा लाल।

धरती कहे………………

वन-उपवन भी कट रहे हैं,

देखो,भूमि  हुई  उजाड़।

वनस्पति-औषधि कहाँ से पाओगे,

क्यों नहीं करते तुम विचार।

धरती कहे……………..

देखो  मेरे  सीने  पर,

कचड़ा का लगा अंबार।

यह सोच मैं डर रही हूँ,

कहीं वायु हो न जाए विषाक्त।

धरती कहे……………

ग्लोबल वार्मिंग के चलते,

कहीं पड़ न जाए अकाल।

समय रहते तू चेत जा बच्चे,

माँ करती तुझसे गुहार।

धरती कहे………………

         कुमकुम कुमारी ‘काव्याकृति’

               मुंगेर, बिहार