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सड़कों पर कर्मयोगी किसान
है वो धरती का भगवान ।
कोई नहीं इससे अंजान
क्यों हो रहा इसका अपमान ।
जो खून पसीना देता है
बदले में कुछ न लेता है ।
सारे दुख सह लेता है
डगमग नैया को खेता है ।
क्यों सह रहा है कष्ट अपार
उसके दुख का ना पारावार ।
है बैठा क्यों मन में विकार
क्यों मौन बनी है सरकार ।
मत राजा बन विवाद करो
सीधा इनसे संवाद करो ।
मत इन पर तुम अन्याय करो
राम बनकर न्याय करो ।
समय सबको तकता है
सबकी करनी को लखता है ।
जब जख़्मों पर नमक मलता है
किसी का दाल नहीं गलता है ।
जब समय दोषी को कसता है
इतिहास उस पर हँसता है ।
जब राजा न्याय से हटता है
विश्वास जन-जन में घटता है ।
उथल-पुथल जब होता है
मनुज अस्मिता खोता है ।
खाईं में बीज वो बोता है
जीवन भर दुख में सोता है ।
रैदास कबीर और गुरू नानक
मानवता के हैं ये मानक ।
ईश्वर के है ये बहुत करीब
माना धन दौलत से रहे गरीब ।
करो नहीं इन पर सियासत
मजहब देता नहीं इजाजत ।
इनके वचनों पर ध्यान धरो
मानव हो मानव का मान करो ।
कण-कण में बसी किसानी का
नदियों के निर्मल पानी का ।
कभी नहीं अपमान करो
सबका सम सम्मान करो ।
जब भरता मन में कलुषित विचार
महाबली भी जाता है हार ।
पाता जन मानस से तिरस्कार
तब करता अपनी गलती स्वीकार ।
इनका विनाश भी देखा है
पढ़ लो इतिहास में लेखा है ।
इतिहास याद दिलाता है
गलती को दिखलाता है ।
जब सत्य-अहिंसा छहरता है
तब अपना तिरंगा लहरता है ।
बनता वीरों का बाना है
ये मानवता का ताना-बाना है ।
पढ़ लो फिर से गीता कुरान
या पढ़ लो वेदों के मंत्र महान ।
सत्य दर्पण-सा चमकता है
रण चंडी सा लपकता है ।
दिखती नहीं जब ईमानदारी
हर मनुज माँगता हिस्सेदारी ।
तुम खुद करते हो मनमानी
उनको कह देते खालिस्तानी ।
मत करो ऐसी नादानी
नहीं मिलेगा दाना पानी ।
रोटी पर की पहरेदारी
पड़ेगी एक दिन सब पर भारी ।
भारत की एक ही माई है
जो सबसे बड़ी कमाई है ।
देता जगत दुहाई है
एकता जिसकी निहाई है ।
जब रहबर बनता है भुजंग
बिष भर देता अंग – अंग ।
छिड़ता है एक शीत जंग
खाली करना पड़ता निषंग ।
अहंकार जब पोषित होता
जनमानस तब शोषित होता ।
उठती विरोध की सबल तरंग
शांति को कर देती है भंग ।
जन सेवक वही सच्चा होता
जो अबोध-सा बच्चा होता ।
ईश्वर का पाता वरद हस्त
होता नहीं कभी वो पस्त ।
सबका विकास सबका साथ
छोड़ता नहीं किसी का हाथ ।
करता हरपल न्याय की बात
पुलकित होते सबके गात ।
वसुधा सुकृति को गाती है
यश वात सभी को भाती है ।
तब चेहरों पर रौनक आती है
मन की कलियाँ मुस्काती हैं ।
कृषक नयन जब होते सजल
कंपित होते सुदृढ़ महल ।
भूखमरी चतुर्दिक छाती है
बस रोटी की याद ही आती है ।
सदियों से अविरल चलता है
हलकू को लहना छलता है ।
दाघ – निदाघ में जलता है
बसुधा की गोदी में पलता है ।
संशय ढूँढ़ो मिलते हजार
संशय से भरा पूरा बाजार ।
संशय को दूर करना होगा
फिर जख़्मों को भरना होगा ।
न्याय नहीं दे पाए तुम तो
क्यों मुखिया बन कर बैठे हो ।
सुखिया को दुखिया बनाकर
बोलो किस बात पर ऐंठे हो ।
एम•एस•अंसारी”बेबस”
गार्डेन रीच मटियाब्रुज
कोलकाता-24
पश्चिम बंगाल