पूँजीवाद से लड़ता किसान

“””””””””””””””””””””””””””””””””

सड़कों पर कर्मयोगी किसान 

है वो धरती का भगवान ।

कोई नहीं इससे अंजान 

क्यों हो रहा इसका अपमान ।

     जो खून पसीना देता है 

     बदले में कुछ न लेता है ।

     सारे दुख सह लेता है

     डगमग नैया को खेता है ।

क्यों सह रहा है कष्ट अपार

उसके दुख का ना पारावार ।

है बैठा क्यों मन में विकार 

क्यों मौन बनी है सरकार ।

     मत राजा बन विवाद करो

     सीधा इनसे संवाद करो ।

     मत इन पर तुम अन्याय करो

     राम बनकर न्याय करो ।

समय सबको तकता है

सबकी करनी को लखता है ।

जब जख़्मों पर नमक मलता है 

किसी का दाल नहीं गलता  है ।

     जब समय दोषी को कसता है 

     इतिहास उस पर हँसता है ।

     जब राजा न्याय से हटता है

     विश्वास जन-जन में घटता है ।

उथल-पुथल जब होता है

मनुज अस्मिता खोता है ।

खाईं में बीज वो बोता है 

जीवन भर दुख में सोता है ।

     रैदास कबीर और गुरू नानक 

     मानवता के हैं ये मानक ।

     ईश्वर के है ये बहुत करीब 

     माना धन दौलत से रहे गरीब ।

करो नहीं इन पर सियासत 

मजहब देता नहीं इजाजत  ।

इनके वचनों पर ध्यान धरो 

मानव हो मानव का मान करो ।

     कण-कण में बसी किसानी का 

     नदियों के निर्मल पानी का ।

     कभी नहीं अपमान करो 

     सबका सम सम्मान करो ।

जब भरता मन में कलुषित विचार 

महाबली भी जाता है हार ।

पाता जन मानस से तिरस्कार 

तब करता अपनी गलती स्वीकार ।

     इनका विनाश भी देखा है

     पढ़ लो इतिहास में लेखा है ।

     इतिहास याद दिलाता है 

     गलती को दिखलाता है ।

जब सत्य-अहिंसा छहरता है 

तब अपना तिरंगा लहरता है ।

बनता वीरों का बाना है 

ये मानवता का ताना-बाना है ।

     पढ़ लो फिर से गीता कुरान 

     या पढ़ लो वेदों के मंत्र महान ।

     सत्य दर्पण-सा चमकता है 

     रण चंडी सा लपकता है ।

दिखती नहीं जब ईमानदारी 

हर मनुज माँगता हिस्सेदारी ।

तुम खुद करते हो मनमानी 

उनको कह देते खालिस्तानी ।

     मत करो ऐसी नादानी 

     नहीं मिलेगा दाना पानी ।

     रोटी पर की पहरेदारी 

     पड़ेगी एक दिन सब पर भारी ।

भारत की एक ही माई है 

जो सबसे बड़ी कमाई है ।

देता जगत दुहाई है 

एकता जिसकी निहाई है ।

     जब रहबर बनता है भुजंग 

     बिष भर देता अंग – अंग ।

     छिड़ता है एक शीत जंग 

     खाली करना पड़ता निषंग ।

अहंकार जब पोषित होता

जनमानस तब शोषित होता ।

उठती विरोध की सबल तरंग

शांति को कर देती है भंग ।

     जन सेवक वही सच्चा होता 

     जो अबोध-सा बच्चा होता ।

     ईश्वर का पाता वरद हस्त

     होता नहीं कभी वो पस्त ।

सबका विकास सबका साथ

छोड़ता नहीं किसी का हाथ ।

करता हरपल न्याय की बात

पुलकित होते सबके गात ।

     वसुधा सुकृति को गाती है

     यश वात सभी को भाती है ।

     तब चेहरों पर रौनक आती है 

     मन की कलियाँ मुस्काती हैं ।

कृषक नयन जब होते सजल

कंपित होते सुदृढ़ महल ।

भूखमरी चतुर्दिक छाती है

बस रोटी की याद ही आती है ।

     सदियों से अविरल चलता है

     हलकू को लहना छलता है ।

     दाघ – निदाघ में जलता है 

     बसुधा की गोदी में पलता है ।

संशय ढूँढ़ो मिलते हजार 

संशय से भरा पूरा बाजार  ।

संशय को दूर करना होगा 

फिर जख़्मों को भरना होगा ।

न्याय नहीं दे पाए तुम तो

क्यों मुखिया बन कर बैठे हो ।

सुखिया को दुखिया बनाकर

बोलो किस बात पर ऐंठे हो ।

एम•एस•अंसारी”बेबस”

गार्डेन रीच मटियाब्रुज 

कोलकाता-24

पश्चिम बंगाल