जलते दीये घरों में,
ना कोई शिकवा होता,
फूल खिलते सब जगह,
रौशन हर घर होता,
खूबसूरत इस जहां में,
काश! ऐसा होता।
ना पेट जलता किसी का,
ना कोई भूखा सोता,
ना अमीर गरीब की दीवार होती,
ना कोई भेदभाव होता,
खूबसूरत इस जहां में,
काश! ऐसा होता।
अधिकार समान होते,
ना पुरुषत्व का गुमान होता,
ना अबला नारियों पर,
कोई अत्याचार होता,
खूबसूरत इस जहां में,
काश! ऐसा होता।
ईर्ष्या द्वेष है भरा,
कमजोर पीसता जाए,
आगे बढ़ रही नारी तो,
अबला पर जोर चलाए,
रोक दे बढ़ते कदम,
अपना अहम दिखाए,
ना ऐसे पुरुष होते,
ना समाज ऐसा होता,
खूबसूरत इस जहां में,
काश! ऐसा होता।
चीख गूंजे हर जगह,
हर दिल दर्द से है भरा,
जुड़ जाते हैं रिश्ते पर,
प्रेम का नहीं है पता,
प्रेम से ही जुड़ते बंधन,
प्रेम का ही रिश्ता होता,
खूबसूरत इस जहां में,
काश! ऐसा होता।
अनामिका मिश्रा
झारखंड,सरायकेला (जमशेदपुर)