तुम सर्द रात में अलाव सी जलती हुई
में मोम सा आगोश में पिघलता गया।
हिज्र का दोर इस मुकाम पे ले आया
तेरे तसब्बुर का मुन्तजिर होता गया।
कभी आ मेरी धड़कनो की सदायें सुन
में सेहरा में अश्खो का समंदर बहाता गया।
मुझसे जुदा तुम कहा मशरूफ हो गये
शहर में चाँद भी बादलो में खोता गया।
तुम पास भी हो मेरे ओर मुझसे जुदा भी
इसी कश्मकश में ज़िन्दगी गुजारता गया।
कमल राठौर साहिल
शिवपुर , मध्य प्रदेश