ओ दीप माटी के
तेरी सदा विजय हो
घिरा है जग में घोर तम
अर्थ जीवन के खो रहे हम
दीप तेरी रौशनी में इतना हो दम
अब किसी की आँख न हो नम
ओ दीप माटी के
तेरी सदा विजय हो ।
अंधेरे रात के छल रहे हैं
हर तरफ दर्प के दानव खड़े
स्वार्थ औरअहंकार के रिपुअड़े
दीप तेरी रोशनी में अब
तम की कालिमा का क्षय हो
ओ दीप माटी के
तेरी सदा विजय हो
स्वार्थ-व्यभिचार के नाग
फन फैलाये हर तरफ खड़े
मर्यादा की चादर से अब पांव
बांध तोड़ बाहर निकल पड़े
दीप तेरी रोशनी में अब
हर शत्रु का दमन हो
स्वार्थ मिटे ,बने सहिष्णु अब
दरकती इंसानियत को मिले
मिले नया उजाला फिर से
हर देहरी पर जले दीप अब
ओ दीप माटी के
तेरी सदा विजय हो ।
निर्मला जोशी’निर्मल’
हलद्वानी,देवभूमि
उत्तराखंड ।