माता बिना मायका कैसा
पिता बिना कैसा संसार,
भ्रातृ बिना क्या रक्षाबंधन
जिनको दौलत से है प्यार।
रिश्तों के बंधन सब झूठे
कांच के प्याले सम है टूटे,
पहने अहंकार का चश्मा
रिश्तों को दौलत से लूटे।
समझ का ये फेर है प्यारे
माया से सब बंधन हारे,
समय का पहिया घूमेगा
जब जस का तस होगा प्यारे।
रिश्तों को रिसते देखा है
पके घाव के पस के जैसा,
तपक-तपककर रिसते-रिसते
मर जाएंगा असुरों के जैसा।
कामी, क्रोधी,लोभी मद मोही
क्या जाने रिश्तों का सम्मान,
अहंकारी कंस औ रावण जैसा
बनता था खुद को भगवान।
कहती है”अलका” नियति से
प्यार दिलों में बनाए रखना,
टूटा रिश्ता जुड़े न जग में
निश्चित है दरार का पड़ना।
माता बिना मायका कैसा
पिता बिना कैसा अधिकार,
भ्रातृ बिना क्या रक्षाबंधन
जिनको दौलत से है प्यार।
अलका गुप्ता प्रियदर्शिनी
लखनऊ, उत्तर प्रदेश।
-7408160607