हे सतित्व की रक्षिता,
हे सत्यवान की सावित्रीसावित्री
स्त्री विचार मे ले अवतार,
फिर से बचाओ तुम संस्कृति
धर्मराज से छिन लाना,
था फिर भी आसान,
पर स्वयं चुने जो मरन पथ,
ये कैसे हैं सत्यवान
कैसे सत्य स्वीकार करे,
इनकी दुर्बल मनोवृति
स्त्री विचार मे ले अवतार,
फिर से बचाओ तुम संस्कृति
पथ भिन्न-भिन्न करते चयन,
कई दुर्व्यसन,पर आकर्षण।
कभी मदिरालय,कभी नृत्यालय,
कभी भामिनी का चरित्र हनन ।
कहाँ कहाँ से वापस लाये,
पति को अपने,कुंठित स्त्री।
स्त्री विचार में ले अवतार,
फिर से बचाओ तुम संस्कृती।
बदले युग मे है पहल नई,
सतित्व बचाना सरल नही।
स्त्री मे ऐसी ज्वाला हो,
भष्म कुदृष्टि वाला हो,,
सौंदर्य सराहना भाये नही,
पर पुरुष कोई समझाए नही,
नारी को धधकती अंगार करो,
कुविचारो का संहार करो।
स्त्रीकुल की कुलपुजिता,
रग रग में भर दो स्वाभिमान
वो शौर्य भी दे दो थोड़ी सी,
पति मे प्राकट्य करें सत्यवान।
पथ भ्रष्ट से वापस ले आयें,
हो मर्यादित हर प्रवृति,
स्त्री विचार मे ले अवतार,
फिर से बचाओ तुम संस्कृति।
क्षमा शुक्ला
औरंगाबाद बिहार