लेखनी उदास है

सोच रही हूँ बैठकर 

बोलूं क्या मैं रचना?

कुछ बोलने को विचार 

होने चाहिये,

लेखनी उदास कुछ 

दिन से पड़ी लेखनी 

सुधारने की धार होनी चाहिए।

चेहरे पर देख उदासी

मन मुस्कान को तरसे,

तब मन मुस्कान लिये 

कहती हूं कुछ बातें तेरे लिये।

सबके चेहरे को बहुत भाती हैं,

सबको अपना बनाती हैं,

गमों का दौर हो या हो 

दर्द भरी राह

हर राज छुपा लेती मुस्कान।

नफरत से हारी बाजी को

जीत का सहरा पहनाती है मुस्कान।

चैहरे का मुखौटा बन

तुझे जग हसाई से बचा

तेरी रक्षा कवच बन

तुझे हौसला देती है ये मुस्कान।

दुश्मन को भी दो दोस्त बना दे

एैसा मीठा औजार है ये मुस्कान।

कांटों की चुभन का एहसास

भुला देती है मुस्कान।

मुसीबत में लड़ने का हौसला

देती है मुस्कान।

मुर्झाये मन में छम-छम से आकर

तुझे यौवन सा जोश दिलाती ये मुस्कान।

मुस्कान हर आत्मा की आवाज,

मन की आवाज तन की आवाज।

मुस्कान बगिया का वो फूल है

सुगंधित कर देती स्पर्शियों को।

मुसीबत मे लड़ने का 

हौसला देती ये मुस्कान,

हर उदास दिल की ख्वाहिस 

है ये मुस्कान जाते जाते

हर पल मुस्कुराया 

करो मेरे दोस्तों,

बड़ी किस्मत से मिलती है 

ये मुस्कान मेरे दोस्तों।

सौ वजह मिलेगी रोनें की 

हंसने की एक वजह 

काफी है मेरे दोस्तों।

प्रियंका पेडिवाल अग्रवाल, विराटनगर-नेपाल