” देख रहे हो उन बड़े बाबू को, सुधाकर भाई! देखने से कोई बड़े अफ़सर लगते हैं लेकिन है एक नंबर चालाक l चालू कहीं का l”
दिवाकर ने अपने ठिये पर रेहड़ी लगाते हुए कहा l
“क्या बात है, क्यों कोस रहे हो भले मानुष को?”
” अरे, काहे का भला मानुष! चार दिन पहले यही भला मानुष मुझसे एक दर्जन केला और एक किलो सेब लेकर गया था l पेटीएम इनसे हुआ नहीं l नकद एक सौ बीस थे, सो दे दिए, रह गए साठ रुपये तो हमने कहा बाद में दे देना l आज पांँचवां दिन है पर इनका ‘बाद में ‘अभी तक नहीं हुआ l ऐसा नहीं है कि बाज़ार नहीं आते, रोज़ आते हैं पर आँखें नहीं मिलाते और न ही रेहड़ी की ओर देखते हैं l क्या ज़माना आ गया, छी l “
” अरे! भूल गये होंगे, याद दिला दे l”
“याद तो दिला दूँ, रोज़ ही सोचता हूँ पर, डर लगता है कि कहीं लेने के देने न पड़ जाएं l तुम्हें नहीं पता है ये बड़े लोग ज़रा – ज़रा – सी बात को इज़्ज़त का सवाल बना लेते हैं l”
“तो रहने दे, जाने दे, क्यों टेंशन ले रहा है, साठ ही तो रुपये हैं l”
” अरे! कैसे जाने दूँ, सुबह चार बजे, खुले रिक्शे में मंडी जाकर फल लाता हूँ l नींद – भूख, खून – पसीना एक करके जब दो पैसे होते हैं l और तुम कह रहे हो जाने दूँ l” दिवाकर ने चिढ़ते हुए कहा l
तभी वह भला मानुष दिवाकर की रेहड़ी के पास आ गया l
” केले कैसे दिए, भाई l” भले मानुष ने पूछा l
“बाबूजी! आपसे कभी मोल-भाव किया है जो आज करेंगे l साठ रुपये दर्जन l”
“पचास नहीं l”
” जी, केले भी देखिए, पूरी पटरी पर नहीं होंगे इस क्वालिटी के l और फिर आप तो हमारे पुराने ग्राहक हैं, आपको ग़लत चीज़ थोड़े ही देंगे, चार दिन पहले भी तो लेके…. l”
“ठीक है, दे दो, ज़्यादा बातें मत बनाओ l” भले मानुष ने बात काटते हुए कहा l
दिवाकर ने एक दर्जन केले दिए l भले मानुष ने दो सौ का नोट दिया l दिवाकर ने एक सौ चालीस रुपये वापिस किए l भला मानुष जाने लगा तो पीछे से दिवाकर बोला l
” बाबूजी! पिछले साठ रुपये बैलेन्स है, आप शायद भूल गए हैं l”
आख़िर दिवाकर ने बोल ही दिया l
” कौन – से साठ रुपये रे!” भले मानुष ने आश्चर्य से पूछा l
“बाबूजी, पिछले मंगलवार के, जब पेटीएम नहीं हुआ था आपसे.. एक सौ अस्सी में से एक सौ बीस ही नकद थे आपके पास.. आप केले वापिस कर रहे थे, मैंने कहा बाद में दे देना, आपने कहा ठीक है.. याद आया बाबूजी!”
” बकवास बंद करो, मैं तुम्हें जानता तक नहीं, और मैं किसी का उधार नहीं रखता, समझे l “
भले मानुष ने उफनते हुए कहा l
” देखिए बाबूजी! हम ग़रीब जरूर हैं पर झूठे नहीं हैं l मुझे क्या पागलपन का दौरा पड़ा है जो बोनी – बट्टे के समय आपसे झूठ बोलूंँगा l “
” इसका मतलब मैं झूठा हूँ! मैंने तेरे साठ रुपये मार लिये l मैं इतना घटिया आदमी हूँ कि रेहड़ी – पटरीवालों को ठगता फिर रहा हूँ l अपना भला चाहते हो तो चुपचाप केले बेच लो, नहीं तो पटरी पर रेहड़ी लगाना भूल जाओगे l बदतमीज़ कहीं के l”
शोर – शराबा सुनकर आसपास के लोग इकट्ठे हो गये l
” अबे! तुझे ये अंकल चोर-झूठे नज़र आ रहे हैं l और तुम साले साहूकार हो! साले, ग़लत माल तुम देते हो, कम तुम तौलते हो, झूठ तुम बोलते हो और दूसरों को झूठा कहते हो l साले अभी तेरी रेहड़ी उठवाता हूँ l”
एक नवयुवक ने गुस्साते हुए कहा और फोन करने लगा l तभी एक महिला और एक बारह – तेरह वर्ष की लड़की दौड़ी – दौड़ी आई l
” क्या हुआ, क्या हुआ भइया! क्या बात है, क्यों लड़ रहे हो?” महिला ने घबराते हुए दिवाकर से पूछा l
” अरे बहन जी! अच्छा हुआ आप आ गई l आप भी तो थी न उस दिन जब साठ रुपये मेरा बैलेन्स रह गया था l”
” हाँ – हाँ, साठ रुपये रह गये थे तुम्हारे, तो, क्या हुआ?”
महिला ने हामी भरते हुए कहा l
“हुआ कुछ नहीं बहन जी! मैं बस बाबूजी को वही याद दिला रहा था पर बाबूजी मना कर रहे हैं और राशन – पानी लेकर मुझ पर चढ़ बैठे l मान ही नहीं रहे, ऊपर से गाली – गलौज और रेहड़ी उठवाने की धमकी दे रहे हैं l अपना पैसा माँगना भी आजकल तो गुनाह हो गया है l”
कहते – कहते दिवाकर रोने लगा l
” भइया माफ़ करना!, रोओ मत, पिछले साल इन्हें कोरोना हुआ था l ठीक तो हो गये हैं पर आजकल ये उसके कारण कुछ याद नहीं रख पाते l माफ़ करना भइया! यह लो तुम्हारे साठ रुपये l”
दिवाकर को अचानक भले मानुष पर तरस आने लगा
नेतराम भारती
गाज़ियाबाद उत्तर प्रदेश
9871579114