तुमसे

तुमसे मेरे मन को लगी है अनोखी लगन

तुम्हारी यादों के फूल चुनती है धड़कन।

तुम बिन मृत हो जाती हैं सभी आशाएँ

तुमसे ही उमंगों के मोर करते हैं नर्तन।

तुम्हारी सीरत की खूबसूरती मुझे लुभाती है

ईश्वर बनाकर करती हूँ तुम्हारा मैं पूजन।

तुम मेरे जीवन के आदर्श बन गए हो,

तुम्हारे व्यक्तित्व को करती हूँ मैं नमन।

मन मंदिर में विराजमान है मूरत तुम्हारी 

आरती उतारते हैं निशिदिन मेरे नयन।

तुम्हारी साँसों की सुगंध महसूस करती हूँ,

चलती है जब भी बसंती सी पवन।

किसी और की हृदय को चाह ही नहीं,

तुम्हारे नाम कर दिया है मन का भवन।

मेरे सुख दुःख के साझीदार तुम्हीं हो

तुम्हीं हो मनमीत,चिरसखा और सजन।

प्रेम के जल से तुमने जो सिंचित किया है,

असँख्य पुष्पों से भर गया है हृदय-उपवन।

अब और क्या दूँ तुम्हें ओ मेरे हमदम,

अर्पित किया है तुमपर तन-मन,जीवन।

प्रीति चौधरी “मनोरमा”

जनपद बुलंदशहर

उत्तरप्रदेश