तिमिर घना हो कितना ही,
पग मग से नहीं हटाना तुम।
अपने मन में सदा आस का,
दीपक एक जलाना तुम।
विपदाओं से लड़ो सदा ही,
नहीं बैठना तुम हारकर।
रखो हौसला मन मे अपने,
मत बैठो तुम मन मारकर।
बीच राह पर कभी न रुकना,
मंजिल पथ पर कदम बढ़ाना।
तिमिर घना हो कितना ही,
पग मग से नहीं हटाना तुम।
रुका नहीं जो बीच राह पर,
उसने इतिहास बनाया है।
रूखे सूखे पतझर में भी,
प्यारा मधुमास खिलाया है।
कष्टों का शूलों के बीच में,
सुमन सा मुस्काना तुम।
तिमिर घना हो कितना ही,
पग मग से नहीं हटाना तुम।
साहिल दूर बहुत है तो क्या,
माँझी मन मे मत घबराना।
पतवारों पर रखो भरोसा,
मंझधारो पर मत डर जाना।
अशोक सतत लहरो से लड़कर,
मंजिल तक फिर जाना तुम।
तिमिर घना हो कितना ही,
पग मग से नहीं हटाना तुम।
अशोक प्रियदर्शी
चित्रकूट,उ0प्र0
6393574894