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जिंदगी में एक खुली किताब हूं मैं
जख्मों सी भरी एक सौगात हूं मैं।।
पढ़ना चाहे कोई मुझे, आंखें पढ़ लेना मेरी
आंखों में भरा आसूओं का बवंडरे सैलाब हूं मैं।।
चीर के देखो कभी कोई मेरे दिल को
जख़्म ही जख़्म से भरी, बस एक आघात हूं मैं।।
कोई बैठो करीब कभी तो मेरे भी
सुनो मेरी दर्द ए दास्तां, जिससे टूट बेजार हूं मैं।।
चाहती कुछ प्यार भरे लम्हें जिंदगी में मैं भी
प्यारे लम्हों के लिये तरसती, बस एक इंतजार हूं मैं।।
चाहती है वीणा भी वीणा की तरह सुरम्यी बजना
सुरम्यी शब्दों से अंजान, एक दर्द ए झंकार हूं मैं।।
वीना आडवानी तन्वी
नागपुर, महाराष्ट्र
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