उमंगों ने छुआ मुझको पुलक कर खिल उठे हम भी,
मिला जो नेह का निर्झर हुलस कर जी उठे हम भी।
तुम्हारे बिन निशा ठहरी कि गति स्थिर हुई जैसे,
गिरे जब बूंद अंगारे सी तन पर जल उठी जैसे।
कि कलरव पंछियों का सुन अधीरज हो उठे हम भी,
मिला जो नेह का निर्झर हुलस कर जी उठे हम भी।
ठिठकते रह गए सपने प्रगति पथ रुक गए जैसे,
कुचल डाली सभी उम्मीद हसरत ढह गई जैसे,
ठिठुरन की ऋतु में आग अनुभव कर उठे हम भी,
मिला जो नेह का निर्झर हुलस कर जी उठे हम भी।
तुम्हारे बोल जीवन में सुधारस घोलते जैसे,
निरोगी हो गया ये तन अमिय घट खोलते जैसे।
कि बासंतिक उमंगों की घटा से घिर उठे हम भी,
मिला जो नेह का निर्झर हुलस कर जी उठे हम भी।
सीमा मिश्रा,बिन्दकी,फतेहपुर
उ० प्र०-