रोशनी

पूनम से भी अधिक रोशनी

फिर भी आज अमावस है।

घोर कालिमा छाई जग में

ये तम का दुःसाहस है।

द्वारे अनगिन दीप जले,पर

नैनों में उल्लास नहीं ,

एक तुम्हारे ना होने से

लगता कुछ भी पास नहीं।

तुम्हें याद करना,रो लेना

मन ये कितना परवश है।

तुमने ही इक रोज कहा था

है जन्मों का अनुबंधन,

तुम हो जीवन की कस्तूरी

महक रहा जिससे तन-मन।

मेरे सपनों की मूरत हो

घर भी तुमसे पारस है।

साथ बिताये जो मीठे पल

उनको भूल न पाऊँ मैं,

तुम बिन यह पहली दीवाली

कैसे दीप जलाऊँ मैं।

हाल सुनाऊँ किसको जी का

सोच रहा मन मानस है।

अर्चना द्विवेदी

अयोध्या-उत्तर प्रदेश