कुछ दर्द ऐसे होते हैं
जो भीतर -भीतर पलते हैंl
दिल रो- रो कर कहता है
हम रोज-रोज मरते है।
हम झूठी आशाओं में जीते हैं
जहर दर्द का पीते हैं।
उम्मीदो के गहरे साये में
खुली आँखों से सपने
देखा करते हैं।
अश्रु बूंद हम पीते हैं
क्यूँ घुट -घुट कर जीते हैं।
क्रन्दन करता अन्तर्मन
फ़िर भी न हम सभलते हैंl
काश कोई एक दवा होती
जो रिश्तो को मजबूत बनाती।
प्यार ही प्यार भरा करती
विश्वाश का एक महल बनाती।
कभी कोई जब रुठा करता
पल भर में उसे मनाती।
मीठी सी एक गोली देते
रुठों को फिर गले मिलाती।
वंदना यादव,
वरिष्ठ कवित्री एवं शिक्षिका
चित्रकूट उत्तर प्रदेश