तीन मुक्तक

कुछ कहे,कुछ अनकहे,अल्फाज़ है ये ज़िन्दगी।

जो समझ से है परे,वो राज़ है ये ज़िन्दगी।

है किसी के वास्ते इक,मखमली सी सेज यह,

या किसी को कंटकों का,ताज है ये ज़िन्दगी।

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भीड़ से निकलो तो सही,सुर्खियां बन जाओगे।

कोरे कागजों से अलग,पर्चियां बन जाओगे।

फिर नहीं मौका मिलेगा,वक्त गुजरता जा रहा,

लोकहित में लग गए तो,तख्तियां बन जाओगे।

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गीत,ग़ज़लों,मुक्तकों में,प्रीत का श्रृंगार लिक्खूं।

चाहता हूं मैं हमेशा,सुख भरा संसार लिक्खूं।

जब अंधेरा मन की काली,कोठरी में व्याप्त हो,

तब कलम की ताकतों से,ज्ञान का भंडार लिक्खूं।

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बिनोद बेगाना

जमशेदपुर, झारखंड