रागिनी

अवनि अपनी फौजी अफसर बेटी रागिनी के इंतेज़ार में प्लेटफार्म में थी। रात को 10 बजे पहुँचने वाली गाड़ी अभी दो बजे तक नही आई थी, अभी अनाउंसमेंट में पता चला एक घंटा और लगेगा। 

बस सब उसके विचारों की ट्रेन ने एक्सप्रेस का रूप ले लिया। घर मे तीसरे बच्चे का इंतेज़ार था, सासु जी रोज ताने दे रही थी, पता नही कितने बार फ़ोन पर राजेश को बोला, छुट्टी लेकर आजा, अल्ट्रासाउंड करा लें, नही सुनता वो भी। दो तो पहले ही हैं तीसरी देवीआ गयी तब पता चलेगा। और उनकी बात सच हुई, तीसरी बेटी हुई। एक दिन भी दादी ने पोती को गोदी नही ली। अवनि की भाभी निसंतान थी, ये रवैया देखकर उसने रागिनी बेटी को भाभी के जिम्मे किया, दिल के टुकड़े को किसी के सुपुर्द करना, वही जानता है, जो भुक्तभोगी हो। उसी के एक साल बाद ही राजेश भी कारगिल के युद्ध मे साथ छोड़ गए।

और तीसरी बेटी रागिनी एनडीए परीक्षा पास करके आर्मी में अफसर बनी। उसके भाभी के पास जाने से भाभी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। उसके बाद इस बार रागिनी पहली बार दीवाली की छुट्टी पर घर आ रही थी।

तभी दूर से बड़ी सी लाइट चमकी, अवनि समझ गयी ये रोशनी बेटी रागिनी फैला रही है।

और रागिनी ट्रेन से उतरकर अवनि के गले लग गयी।

भगवती सक्सेना गौड़

बंगलोर