पत्थर

 सुनहरे से मनभावन पत्थर की कहानी है। उस पत्थर को कोई भी इधर उधर सरकाता रहा, सबकी इच्छा पूरी करने में कामयाब पत्थर था। जन्म से वो पत्थर नही था, वो तो कोमल कली का दिल था, जिस सदी में उस कली ने जन्म लिया, लड़कियों के भाग्य नही खुले थे। दुनिया भर की बंदिशें उनके कदमो में थी, धीरे धीरे समाज और बिगड़ता गया, बंदिशें और जकड़ती गयी। उसके अंतर्निहित मन मे एक गठरी थी जिसमे संवेदनाये, भावनाये भरी थी। कुछ साल बाद वो दिल का पत्थर किसी को दान कर दिया गया, समाज ने दिल की आज्ञा लेना भी गवारा नही समझा।

अब वो पत्थर सबकी सेवा में लग गया, उसके बिना तिनका भी इधर का उधर नही होता था फिर भी वो

घर मे सबको राह का रोड़ा प्रतीत होता था। क्योंकि उस पत्थर के नैनो में अंतर्ज्योति थी, गलत कार्य मे लाल होने की और खुशी में झर झर बहने की।अचानक एक दिन उस पत्थर के पास गलती से किसी ने कलम रख दिया और चुम्बकीय आकर्षण हुआ, पत्थर ने कलम को आलिंगन में लिया। अब पत्थर को अपना पिछला जन्म याद आ गया, वो तो प्रसिद्ध लेखक था।   कलम ने पत्थर को एक कोमल दिल मे परिवर्तित कर दिया, और दिल से रोज ही संवेदनाओं को शब्दो का स्वरूप कहांनी बन के गूंजने लगा। 

भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर