“हेलो,ये बिजली बंद होने की शिकायत आपने ही की थी। क्या बिजली आपके घर की ही बंद है!”बिजली विभाग का कर्मचारी गाड़ी से दनदनाते हुए उतरकर आया और पूछने लगा।
“जी,इतने घरों में यहीं तो अंधेरा छाया है भाई। त्यौहार के मौसम में इसी घर में कल शाम से बिजली बंद है।””अच्छा ठीक है।मीटर कहां है।मीटर में लाइट आ रही है क्या?”उस भलेमानस ने मेरी बुजुर्गीयत और उम्र का लिहाज़ कर संयत स्वर में पूछा।
“नहीं भैया,शायद लाइट खंबे पर से ही बंद है।””अरे अंकल,आपकी तो लाइन ही खंबे पर से कटी हुई है।आपने बिल जमा नहीं किया होगा।”खंबे को पास से निहारते हुए वह बोला।”लेकिन भैया,मैं तो हर महीने नियमित रूप से बिल राशि आनलाइन ही भुगतान कर देता हूं।देखो ये नवम्बर महीने का भी जमा कर रखा है। मोबाइल में रसीद भी डाउनलोड कर रखी है। बिजली का बिल भरना और जीवित होने का प्रमाणपत्र देना मैं कभी नहीं भूलता।”
“वह तो ठीक है।आप अक्टूबर का बिल बता दें।”
“भाई,बिल रेग्यूलर मिलता कहां है।बिल भी घर के बाहर फेंक कर चले जाते हैं।कभी मिलता है,कभी नहीं मिलता है। मैं तो इसी कारण बिना बिल का इंतजार किए आनलाइन ही जमा कर देता हूं।”
“यह तो गलत है।बिल अगर आपको नहीं मिलता है तो आपको शिकायत करना चाहिए लेकिन बिल और उसके भुगतान की रसीद तो आपको संभालकर रखना ही चाहिए।”
“शिकायत सुनता कौन है?फिर ये डिजिटलाइजेशन का क्या मतलब है।जब आनलाइन शिकायत पर आप समस्या सुलझाने आ गये हैं तो आनलाइन रसीद को भी मानना चाहिए।”
“दादा,उससे कहां इंकार कर रहे हैं लेकिन आपकी लाइन क्यों काटी गई,यह तो हमें पता करना ही पड़ेगा न!और इसके लिए पिछले महीने का बिल देखना पड़ेगा।”इस बार साथ में आए एक अधेड़ से आदमी ने कहा।
“भैया,जब आजकल सब आनलाइन है तो आप खुद ही देख सकते हो।”मुझे उस कर्मचारी पर थोड़ा गुस्सा आने लगा था।
“देखिए अंकल,हम आपकी उम्र का लिहाज़ कर रहे हैं और इसीलिए सहायता करना चाह रहे थे,वरना तो हमारा सेक्शन अलग है।यह सब हम नहीं देखते।किसी फाल्ट के कारण लाइट बंद है तो दुरूस्त कर देंगे लेकिन यहां तो लाइट कटने वाली बात है।यह दूसरे सेक्शन का मामला है।आपको आफिस में बिल की राशि के भुगतान की रसीद के साथ अर्जी देकर ही निकाल निकलवाना होगा या आनलाइन कम्पलेंट भी कर सकते हैं।”
“भाई, मैं क्यों अर्जी दूंगा। गलती मेरी तो है नहीं। गलती अगर विभाग ने की है तो सुधारेगा भी वही।”
“तो ठीक है दादा,आप इंतजार करते रहना। विभाग वालो के पास यही काम बचा है कि अपने कर्मचारियों की गलती खोजने घर-घर जाएंगे।”
“ठीक है भैया, कम्पलेंट भी कर देता हूं ।”मैंने हथियार डालते हुए कहा।
कम्पलेंट के अगले दिन-
“ये बिजली कटने की शिकायत आपने की थी?”उधर से फोन पर पूछा गया।
“हां भाई,हम ही ने की थी ।दो दिन से अंधेरे में ही गुजारे हैं,वह भी बिना गलती के।”
“गलती तो की है।आपने बिजली का बिल भरा ही नहीं है। रामचन्द्र आप ही का नाम है न।”
“हां भाई,नाम तो हमारा ही है। लेकिन हम पर पिछला कुछ बकाया भी नहीं है और हर माह बिल भी बराबर निर्धारित तिथि के पहले ही जमा कर देते हैं।”
“नहीं दादा, सिस्टम बिल राशि बकाया बता रहा है।आपका थ्री फेज कनेक्शन है न! इसमें चौबीस सौ रूपए बकाया चल रहे हैं और इसीलिए कनेक्शन काटा है।”
“अरे नहीं भाई,हमारा तो सिंगल फेज कनेक्शन है।और हर महीने आनलाइन बिल भुगतान करते हैं।”
“लेकिन नाम तो आपका ही बता रहा है यहां, रामचन्द्र पिता दिनेशचंद्र।”
“अरे भाई हमारा नाम तो रामचन्द्र पिता दौलतराम है।ये वाले रामचन्द्र तो हमसे छ: मकान दूर रहते हैं।इनकी आटा चक्की है। थ्री फेज कनेक्शन उन्हीं का होगा।”
“अरे हां,इनका तो कनेक्शन नंबर ही अलग है। चलिए ठीक है आपकी लाइन चालू करने के लिए आदमी भेजता हूं।”
“यानी आप विभाग की गलती मान रहे हैं जिसके कारण मुझे और मेरे परिवार को अनावश्यक परेशानी झेलना पड़ी है।”
“इसमें गलती कहां हुई दादा।नाम एक जैसे होंगे तो गफलत तो होगी ही। यह सब छोड़ो दादा,आपकी लाइन आज चालू हो जाएगी। बस थोड़ा सा धैर्य रखो।”
डॉ प्रदीप उपाध्याय,16,अम्बिका भवन,उपाध्याय नगर,मेंढकी रोड,देवास,म.प्र.
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