सजी प्रेम से मन की डारी ।
तुम फिर आओ गिरधारी ।।
जनम-जनम की मैं री प्यासी।
तुमरी हूँ चरणों की दासी।।
मैं जोगन तेरी ही प्यारी ।
तुम फिर आओ गिरधारी।।
वंशी तेरी पास बुलाएं।
मेरे मन को भरमाएं।।
मैं तो तुझसे ऐसी हारी ।
तुम फिर आओ गिरधारी।।
इत-उत दिन भर मैं तो बोलूँ।
देखों कैसी मैं डोलूँ।।
शाम सबेरे खिलती नारी ।
तुम फिर आओ गिरधारी ।।
प्रीत अनोखी अगन जलाएँ ।
प्रियतम को पास बुलाएँ।।
अद्भुत सी यह कैसी यारी ।
तुम फिर आओ गिरधारी ।।
आज अनोखी साज बजी है।
अब राधा देख सजी है।।
तुझपर मैं तो सब कुछ वारी।
तुम फिर आओ गिरधारी।।
व्यंजना आनंद (मिथ्या)