इंतज़ार के बाद..

बहुत बार

क्षुब्धता से खीझी हुई मैं

पूछती हूं ढेरों सवाल

रात के अकेलेपन से ,

वो 

बिना कोई जवाब दिए

थमा जाती है

मेरी हथेली में

एक पर्ची

लिखा होता है जिसपर

“इंतज़ार”,

धीरे-धीरे

पद्चाप सुनाई देने लगती है

मुस्कुराती हुई सुबह की ,

और मैं

समेटने लगती हूं

सभी बिखरे सिक्के इंतज़ार के

ताकि रख सकूं संभालकर

मन की गुल्लक में ,

लंबे इंतजार के बाद 

सुबह का आगमन चमत्कारी ही होता है हमेशा 

                                                     ‌ है न !!

नमिता गुप्ता “मनसी”

उत्तर प्रदेश, मेरठ