नई दिल्ली । दल बदल कानून में फिलहाल बदलाव की कोई उम्मीद नहीं है। इस कानून के तहत मिले विशेषाधिकार को लेकर विधानसभा अध्यक्षों में एक राय नहीं है। कई विधानसभा अध्यक्षों की राय है कि कानून में कोई बदलाव नहीं किया जाना चाहिए। वहीं, कई अध्यक्ष मानते हैं कि दल बदल कानून में सदस्यों को अयोग्य करार देने या मान्यता देने में उनकी कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। पीठासीन अधिकारियों के 82वें सम्मेलन के बाद मीडिया से बात करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि दल बदल कानून पर सीपी जोशी समिति की रिपोर्ट पेश की गई। पर रिपोर्ट पर आम राय नहीं बन पाई। ऐसे में इस विषय पर पीठासीन अधिकारियों की अगली बैठक में दोबारा विचार किया जाएगा। हम सहमति के आधार पर आगे बढ़ेंगे। दल बदल कानून पर रिपोर्ट पर हुई चर्चा के बाद राजस्थान के विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने कहा कि किसी विधायक को अयोग्य करार देना या मान्यता देने में विधानसभा अध्यक्ष की कोई भूमिका नहीं होनी चाहिए। इसका निर्णय उस पार्टी के अध्यक्ष का होना चाहिए। पार्टी अध्यक्ष को चुनाव आयोग को इस बारे में लिखना चाहिए। दरअसल, कई राज्यों में दल बदलने वाले विधायकों के मामले काफी समय से विधानसभा अध्य़क्षों के पास लंबित हैं। विधानसभा अध्यक्ष अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए कई साल तक कोई फैसला नहीं करते। ऐसे में मामले अदालतों में भी जाते हैं। सीपी जोशी का मानना है कि अध्यक्षों को इससे बचना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने ‘मनी बिल’ को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश बनाने की वकालत की। जोशी का कहना है कि किसी पीठासीन अधिकारी के विवेक पर इस निर्णय को नहीं छोड़ा जाना चाहिए, क्योंकि कई बार बहुत सारे कारणों के चलते निर्णय लेने पड़ते हैं। इसके लिए उन्होंने आधार सहित कई विधेयकों के उदाहरण भी दिए।