अजीब सी कशमकश में थी डॉ रिचा, पहले पिता, फिर चाचा, फिर भतीजा और आज डॉ राजेश उसके पति, सब बारी बारी से एक माह के अंदर कोई कोविड से, कोई हार्ट अटैक से स्वर्गवासी हो गए । आंसू थे कि रुकने को तैयार न थे, हर कोई उसका अपना था।
समझ मे नही आ रहा था अपने दिल को संभालू, हॉस्पिटल के पेशेंट देखूं, सासु जी को सांत्वना दूं या अपने बेटे को गले लगाऊं। कभी कभी भगवान भी परीक्षा के कठिन पेपर भेज देते हैं।
एक तरफ सासु जी अपने बेटे के लिए तड़प रही, दूसरी तरफ अपना 10 वर्षीय बेटा पापा की याद में गुम है।
हालात उसे अतीत की ओर ले गए, अभी मार्च के महीने में ही प्लान बना रहे थे, “सुनो, माय रिचु, बहुत व्यस्त जिंदगी चल रही है, थोड़ा फ्री होकर हम सब स्विट्ज़र्टलैंड की सैर करेंगे, आजकल मैं मम्मी और टोनु को भी समय नही दे पा रहा हूँ।” उनका यही प्यार था, रिचा दुगुने उत्साह से जिम्मेदारी निभाने में लगी रहती थी।
तभी मम्मी की सिसकियों की आवाज़ से तंद्रा भंग हुई।
कर्तव्यपरायणता की मिसाल बनकर चल पड़ी, डॉ रिचा
पूरे परिवार की जिम्मेदारी, और अस्पताल की बागडोर संभालने !!
सैनिक जान देकर देश की रक्षा करता है, डॉक्टर जान देकर जनता की रक्षा करता है ।
भगवती सक्सेना गौड़
बैंगलोर